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________________ ४८२] पश्चिमी भारत की यात्रा रायघन ने सिन्ध के किनारे से महान् रण के तट तक एक नये उपनिवेश की स्थापना की और वहीं पहले 'चूड़ी' में स्थान कायम किया फिर जल्दी ही बुचाऊ (Butchao) के पास वेन्द (Vend) अथवा ऊंद (Oond) में स्थानान्तरित हो गया। रायधन के चार पुत्र उसके साथ सामनगर से आए थे परन्तु वंशावली में लिखा है कि उसके पोयला नामक एक 'पंचम पुत्र" भी था, जो किसी दासी से उत्पन्न हुआ था और उसके दो पुत्र जुदुब (Zudub) और कुतुब (Cootub) सिन्ध में ही रह गए थे। रायधन द्वारा स्वदेशत्याग का कोई कारण नहीं बताया गया है और न इस बात का ही उल्लेख है कि उसके मुसलिम नामधारी पुत्रों की उस समय सिन्ध में क्या स्थिति थी जब उनके पिता ने उस स्थान को छोड़ा था? सम्भावना यह है कि उसको वहाँ से निकाल दिया गया होगा । उसके चार पुत्र थे१. देदा (Dedoh)-कंथर-कोट की गद्दी प्राप्त की। | जेठवों को पराजित किया और उसके पुत्र हाल ने अपने २. गजन २ जीते हुए देश का नाम हालार रखा तथा नवानगर ' ' । बसाया और जाम की उपाधि को कायम रखा। ३. प्रो'ठो (Ot'oh) इससे भुज के राजवंश का उद्भव हुआ। ४. हो'ठी (Hot'hi) बरधा (Burdha) में बारह ग्राम प्राप्त किये ; इसके वंशज होठी कहलाते हैं। तीसरा पुत्र ओ'ठो पिता की गद्दी पर बैठा; इससे विदित होता है कि इस वंश में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था; छोना-झपटी में जितना भाग जो जीत लेता और अपने अधिकार में रख पाता वही उसका था । जाड़ेचों के वर्तमान राजनैतिक शासन पर विचार करते समय भी हमको यही बात ध्यान में रखनी चाहिये और अधिक प्राचीन लाखा गोरार जैसे राज्य-संस्थापकों को भी नहीं भुला देना चाहिए क्योंकि यदि ये नये संस्थान कायम न हो पाते तो यह पूरी संभावना थी कि वे पूर्ण नगण्यता में विलीन हो जाते । चूड़चन्द और सम्मानों के इसलाम में परिवर्तन से पहले भी कच्छ में उत्पात होते रहे हैं और इस भू-भाग का नाम इतिहास में उब्रासी (Ubrassie) मिलता है, जो इस बात का प्रमाण है कि प्रथम खंगार के पुत्र उब्रा (Ubra) के नाम पर ही इसे यह संज्ञा प्राप्त हुई थी। • राजपूतों में प्रपरिणीता में उत्पन्न पुत्र को 'पञ्चम पुत्र' कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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