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सम्बन्ध विच्छेद होता है, छुप जाय; और अब क्योंकि वे अपने पुराने और नए धर्म के बीच में भूल रहे हैं इसलिए उन्होंने अपने हिन्दू मूलपुरुष 'साम्ब' के नाम को भी पारसी 'जमशेद' के नाम पर बलिदान कर दिया है - इस प्रकार 'साम' 'जाम' बन गया है, जो इस समय नवानगर में निवास करने वाली शाखा की उपाधि बना हुआ है ।
प्रकरण
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• २२; लाखा गरोरा
हम (स्वधर्म - त्यागी साम यदु के पितामह) चूड़चन्द और लाखा के बीच की सात पीढ़ियों को छोड़ देते हैं । लाखा का उपनाम 'गोरारो' (Ghoraro) या गर्वीला था और वह सामनगर में राज्य करता था । उसके बहुत सन्तानं हुईं और उन्हीं में से एक की शाखा में से जाड़ेचों का निकास हुआ। एक चावड़ावंश की राजकुमारी से उसके चार पुत्र हुए जिनके नाम मोर, वीर, सन्द श्रीर हमीर थे; दूसरी रानी से, जिसकी जन्मभूमि कन्नौज थी, चार और पुत्र हुएऊनड़, मुनई, जय और फूल ।
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लाखा गोरारो (मगरूर ? ) के बाद जाम उनड़ गद्दी पर बैठा और कहते हैं कि वही प्रथम सुम्मा था जिसने 'जाम' नाम को ग्रहण कर लिया था । ऐसा लिखा है कि लाखा-पुत्र ऊनड़ कन्नौज की राजकुमारी से उत्पन्न हुआ था, अत: बड़े भाइयों के होते हुए भी उसके गद्दी पर बैठने से हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि वह राजकुमारी प्रतिष्ठा में बड़ी थी। कुछ भी हो, उसका सुम्मान की गद्दी पर बैठना घातक ही सिद्ध हुआ और इससे हमें बहु-विवाह के दुष्परि णामों का एक और उदाहरण मिल जाता है । ऊनड़ अपने चारों बड़े भाइयों के साथ वेधम प्रदेश में शेरगढ़ (वर्तमान लखपत ) ' गया था जहाँ सामनगर की बड़ी रानी का भाई चावड़ा राज्य करता था। वहीं पर उसे गुप्त रूप से राव लाखा की मृत्यु के समाचार मिले और वह उन सबको चकमा देकर राजधानी लौट आया तथा राजगद्दी पर बैठ गया । इसके कितने समय बाद, यह तो पता नहीं, वरिष्ठता के अधिकार से वञ्चित उसके सौतेले भाइयों ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा (जिसमें उसका सगा भाई मुनई भी सम्मिलित था) और उसे 'दड़ी-दण्ड' के त्योहार में मार डाला । यह कायरतापूर्ण
निस्सन्देह यह नाम लाखा के ही कारण पड़ा है। लखपत के अतिरिक्त सिन्ध में और भी बहुत से नगरों के ऐसे नाम हैं जिनसे सुम्मा वंश का प्रभुत्व सिद्ध होता है, जैसे हाला, इत्यादि ।
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यह गेंद बल्ल का खेल होता है जो प्रायः गांवों में मकर-संक्रान्ति के दिन खेला जाता है । यह गेंद पुराने कपड़ों की परत पर परत लपेट कर सूतली या ढोरी से बाँध कर बनाई जाती
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