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पश्चिमी भारत की यात्रा समस्या आई तो अपने बलाक्रान्त परिवर्तन को छुपाने के लिए उन्होंने यह कहानी ईजाद की । जाड़ेचों के इतिहास में से 'पुरवोई' (Purvoe)' या अंग्रेजी लिपिक ने जो अंश अनुवाद करके दिया उसे मैं यहाँ पर अक्षरश: उद्धृत करता हूँ 'रोम (Rome) के देश में जो भी कोई शाम (Sham) से आता है वह सुम्मा कहलाता है । श्रीकृष्ण और जाम्बवती का पौत्र साद (Saad) शाम में रहता था, जहां से उसके वंशज नबी (पैगम्बर) के डर से भाग गए और उसम (Oossum) की पहाड़ी पर पहुंचे; परन्तु, वहाँ भी जब उन्होंने नबी को दावत करते हुए देखा तो बड़े हैरान हुए । बचाव न देखते हुए वे नबी के सामने लेट गए और प्रसपती ने उसके साथ भोजन करने तथा उसके करवे या मिट्टी के पात्र से पानी पीने का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। वह चगताइयों का राजा बना और उसके भाई अधीनस्थ सामन्त । नरपति को सिन्ध मिला और वह समाई (Samai) में बस गया । गजपति के वंशज भाटी-सुम्मा' कहलाए और उन्होंने जैसलमेर प्राप्त किया।' इत्यादि ।
इस प्रकार इसलाम का जामा पहन कर वे सौर क्षेत्र (जिसमें ऊसम की पहाड़ी है) के बजाय सीरिया में जन्म-स्थान प्राप्त कर लेते हैं और अपने आपको महान् शैमेटिक (Shemetic) वंश का बताते हैं ; फिर भी, यदि नबो के सामने भाग खड़े होने से उनका तात्पर्य मोहम्मद से है तो वे अपने पूर्व आभिजात्य को एकदम भुला कैसे बैठते हैं ? यह भी आश्चर्य की बात है कि जैसलमेर के यदुभाटियों के समान वे तक्षक, तुरुष्क या टर्किश जाति के चगताई (ज फेटिक) [Japhetic] वंश तथा गोर वंश को भी अपने से सम्बद्ध होना बताते हैं ; और इस अन्तिम वंश को 'शाम' का उपनाम देकर कुछ रंग भी दिया गया है, जिसका प्रयोग भारत के प्रथम विजेता मोइजुद्दीन (Moczodin) द्वारा किया गया था। यह सब इसी इच्छा से किया गया था कि उनकी वंशावली पर लगने वाला धब्बा, इसलाम-धर्म में परिवर्तन, जिसके कारण उनका मूल राजपूत वंश से
' अबुल फजल ने असम भाटी लिखा है। • गजनी के राजा शालिवाहन का पुत्र वालन्द हुमा । उसका द्वितीय पुत्र भूपति था। भूपति अपने पिता के जीवनकाल में हो राजगद्दी पर बैठ गया था। उसका बड़ा पुत्र 'चिकेता' था। भूपति की मृत्यु के अनन्तर जब चिकेता राजा हुमा तो उसने बाल्हीक (बलख) के म्लेच्छ राजा उजवक की रूपवती कन्या से विवाह किया और उसके राज्य को भी हस्तगत कर लिया । इसी चिकेता ने अपने भाठ पुत्रों सहित यवन-मत ग्रहण कर लिया था। इसी के वंशज प्रागे चल कर चकत्ता या घगतई मुगल कहलाए।
(जैसलमेर का इतिहास; श्री हरिदत्त गोविन्द व्यास पृ० १२)
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