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पश्चिमी भारत की यात्रा
से कुछ अपने मूल देशों की ओर चले गए, जो अनुमानतः प्राक्सस और क्षार्तीस (Oxus and Jaxartes ) ' पर थे;
कि उन्होंने कॉकेशस क्षेत्र में गजनी, पञ्जाब में सालपुर या श्यालकोट और सिन्धु तट पर सामनगर, सहेवान एवं अन्य नगर बसाए;
कि धर्म-परिवर्तन अथवा कतिपय अन्य कारणों से कुछ लोग पुनः भारत में श्राए; और
यह कि जैसलमेर के भाटी और कच्छ के सिन्ध-सुम्मा या जाड़ेचा उस कुल की प्रतिनिधि शाखाएं हैं, जिसके पूर्व पुरुष कृष्ण थे ।
अब मैं सिन्धु- सुम्मा जाड़ेचों की बात पर फिर आता हूँ । उनके पड़ोसियों के इतिहास के आधार पर मैं उनके इतिहास की प्रामाणिकता की जाँच करने का प्रयत्न करूंगा और यह सिद्ध करूंगा कि विक्रम की आरम्भिक शताब्दियों में भी सिन्धु [तट ] पर उनकी शक्ति बनी हुई थी। हम जाड़ेचा वंशावली में वर्तमान राजा से ऊपर की ओर अनुसंधान करेंगे जब तक कि समानान्तर वंश में किसी निश्चित नाम का पता न चल जाए। अच्छा तो, वर्तमान राजा से चालीस पीढ़ी पहले चूड़चन्द हुआ, जो जेठवा - इतिहास के अनुसार गूमली के संस्थापक शील की चौदहवीं पीढ़ी में राम चामर ( या कंवर ) का समकालीन था । अब, ४० राज्यकाल×२३ (प्रत्येक राज्यकाल के लिए अनुमानित वर्ष २ ) = ९२० वर्ष हुए, तो १८८० - ९२० = ९६० संवत् या ६०४ ई० सामनगर के राजा चूड़चन्द का समय हुआ । अब हम इस फैलावट की जाँच गूमली के पालियों पर लगे शिलालेखों से करते हैं, जहाँ का राजकुमार सालामन निष्कासित हो कर जाम ऊनड़ के पास चला गया था और उसने अपनी सेना साथ देकर शरणार्थी को पुनः गद्दी पर बिठाने के लिए सहायता की थी । जाड़ेचों के इतिहास में जाम ऊनड़ का नाम प्रसिद्ध है क्योंकि वही पहला राजा था जिसने पैतृक उपाधि सुम्मा को 'जाम' में परिवर्तित किया था; वह चूडचन्द की आठवीं पीढ़ी में था इसलिए ८x२३=१८४+१६० = संवत् १९१४४ उसका समय हुआ जिसमें और जेठवा - इतिहास के समय में वर्षों की केवल एक नगण्य-सी संख्या का अन्तर है अर्थात् जेठवा - इतिहास के अनुसार सिन्ध के बामनी सुम्मा ( Bamunca Summa ) जाति के 'लम्बी दाढ़ीवाले और सच्चे मुसलमान असुरों द्वारा' गूमली का विनाश
१ मध्य एशिया की नदियां ।
२ जिस सामग्री के आधार पर यह अनुपात निकाला गया है उसके लिए देखिए 'एनल्स
श्रॉफ राजस्थान' भा० १ पृ० ५२ ।
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