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________________ प्रकरण - २२, प्राचीन राजपूत वंश, सगोत्र विवाह . [ ४६६ पति-शासन के उस जमाने के बाद हिन्दू धर्म [ शासन प्रणाली? ] में अब तक बहुत सुधार हो चुका है। आजकल के राजपूतों में अपने ही कुल में सगोत्र विवाह के विचार को सबसे बुरा समझा जाता है, वे इसे अत्यन्त वर्जनीय मानते हैं। परन्तु, स्वयं कुष्ण की माता देवकी ही उनके पिता की फूफेरी (या मामेरी) बहिन थी; यही नहीं, हमें इस जाति में बहुपतित्व के भी उदाहरण मिलते हैं, जो ट्रान्सोक्षियाना (Transoxiana) के गेटों या जीतों (जिनको चीनी इतिहासकारों ने यूते या यूची (Yuechi) लिखा है ) पाए जाते हैं । इन्हीं में से, एक अधिकारी विद्वान् न्यूमॅन (Nuemann) के अनुसार बुध का जन्म ईसा से आठ सौ वर्ष पूर्व हुआ था। यदि पाठक मेरे 'जैसलमेर के यादव राजा (जो जाड़ेचों के समान अपनी वंशोत्पत्ति कृष्ण से मानते हैं) और जीत या 'गेटिक' वंश पर लिखे हुए निबन्ध को पढ़ें तो ज्ञात होगा कि ये अपर जाति' के लोग अपने को यादवों के वंशज बताते हैं, जिनका निकास हम गजनी से मानते हैं और कहते हैं कि पञ्जाब में सालपुरा होते हुए इस्लाम की बढ़ती के साथ-साथ वे सतलज पार करके भारतीय रेगिस्तान' में उनके वर्तमान संस्थान तक जा पहुंचे थे । यदु-भाटी गजनी को अपनी प्राचीन राजधानी मानने और चगतई वंश को अपनी स्वधर्मत्यागी शाखा बताने के अतिरिक्त यह भी कहते हैं कि वे पश्चिमी एशिया में महान् गृहयुद्ध और अपने नेता कृष्ण तथा पाण्डवों की मृत्यु के कारण आये थे। परन्तु तथ्य यह है, जैसा कि मैंने कई बार कहा है और फिर एक बार दोहरा देता हूँ, कि उस समय पाक्सस (Oxus) से गंगा तक एक ही धर्म में विश्वास करने वाली एक जाति थी और इन प्रदेशों में उनका खूब आवागमन था। अब, हर रोज उन 'साहिबान' (Savans) का आँखें खुलती जा रही हैं, जो कभी सिन्धु (नदी) के उस पार देखते ही न थे क्योंकि वही 'हिन्दू' थी और बाकी सब को 'बर्बर' कह कर सुदृढ़ मोहर लगा दी गई थी। इन संकुचित विचारों को अब छोड़ना पड़ रहा है ; हिन्दू नगर और हिन्दू-गेटिक चन्द्रक काकेशश' तक में पाए गए हैं और मुझे इस बात के प्रमाणित होने में भी आश्चर्य नहीं है कि महाभारत के यदु, पाण्डु और कुरु ही यूची (Yuechi), यती (Yuti) ' एनल्स अॉफ राजस्थान, भा० १, पृ० १०६ ; भा० २, पृ० १७६ । . एनल्स ऑफ राजस्थान, भा॰ २, पृ० २३१ । 3 इन चन्द्रकों और शिलालेखों को सही पढ़ कर समझने की बात हमें ध्यान में रखनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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