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पश्चिमी भारत की यात्रा
पूर्ण अवश्य हैं और इन्हें प्राप्त करने वाले हिन्दूपुरातत्त्व के शोधकर्ता को अपने थकान भरे एवं स्वल्प- लाभप्रद कार्य के लिए भी सन्तोष हो सकता है ।
जाड़ेचा, जो कभी भारत की शक्तिशाली जाति थी, महान् यदुवंश की शाखा में है । ये लोग अपना उद्भव शौरसेन के राजा कृष्ण से मानते हैं । मनु ने शौरसेन के निवासियों को रणकौशल में विशिष्ट बताया है ; सिकन्दर के इतिहास लेखक एरिमन ने भी ऐसा ही लिखा है । मैं समझता हूँ कि ईसा से आठ सौ वर्ष पहले जमना - किनारे के यदुवंशी राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव के आत्मज कृष्ण की स्थिति उतनी ही प्रामाणिक है जितनी कि अन्य किसी देश में उसी काल का कोई ऐतिहासिक तथ्य प्रमाण-सम्मत हो सकता है । असाधारण सौभाग्य अथवा अशिथिल शोध के परिणाम स्वरूप मैंने कृष्ण के पितामह द्वारा संस्थापित शौरसेन की राजधानी शूरपुर का पता लगा लिया, और मानो हिन्दूइतिहास को ग्रीक इतिहास से सम्बद्ध करने के लिए ही मुझे इन्हीं खण्डहरों में मेरा मूल्यवान अपोलोडोटसवाला चन्द्रक भी मिल गया । जमना नदी की धारा जहाँ से यह अपनी चट्टानी रोक को तोड़ कर योगिनीपुर ( श्राधुनिक दिल्ली ), मथुरा, आगरा, शूरपुर होती हुई गंगा से संगम करने के लिये प्रयाग ( वर्तमान इलाहाबाद ) तक, जिसको मेगस्थनीज़ ने प्रासी ( Prasii) की राजधानी लिखा है, पहुँचती है वही प्राचीन यादवशक्ति की विस्तार - श्रृङ्खला रही है; श्रौर इस जाति की उत्तरोत्तर संस्थापित राजधानियों का वर्णन पौराणिक वंशावलियों एवं अन्यत्र उद्धृत पद्यों' में ही नहीं हुआ है अपितु इस तथ्य की संपुष्टि में हमें उन अज्ञात अक्षरों की भी साक्षी मिल जाती है, जो दिल्ली, इलाहाबाद और जूनागढ़ में प्राप्त हुए हैं। अस्तु, यादव जाति का उद्भव कहीं से भी हुआ हो, भले ही वे अपनी 'वंशावली' के अनुसार, पश्चिमी एशिया के शक जातीय राजकुमार की ही सन्तानें हों, हमें अधिक छानबीन नहीं करना है और केवल उन्हीं तथ्यों को आधार मानना है जो उन्हीं के लेखों से प्राप्त हुए हैं अथवा अन्य स्रोतों से जिनकी सम्पुष्टि होती है और जिनसे यह सिद्ध होता है कि कुल
" इस विवरण के लिए कृपया 'ट्रॉजेक्शन्स् श्रॉफ वी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १, पृ० ३१४' देखिए ।
जहाँ दो नदियाँ मिलती हैं वह स्थान 'संगम' कहलाता है और जहाँ तीसरी नदी श्रा मिलती है वह 'त्रिवेणी' कहलाती है जैसे प्रॉंग (प्रयाग) में । यहाँ मिलने वाली तीसरी नदी का नाम 'सरस्वती' है ।
3 एनल्स ऑफ राजस्थान, भा० १ ।
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