________________
प्रकरण - २२; जाडेचों का इतिहास
[ ४६७ सजा हुआ है ; मेवाड़ का राणा जगतसिंह रूस की सम्राज्ञी कैथराइन के साथ मौजूद है ; मारवाड़ का राजा बखतसिंह और होगार्थ (Hogarth) का 'चुनाव',' दूसरे फ्लेमिश (Flemish) • , अंग्रेज तथा भारतीय प्रजाजनों के साथ कच्छ के प्रथम राव से लेकर अब तक के राजा सम्मिलित हो रहे हैं । ये सब असंबद्धताएं होते हुए भी जाड़ेचों की इस चित्र-दीर्घा से कितने ही अनुमानों के सूत्र मिलते हैं ; पुराने और नये रावों के पर्दो तथा सजावट के अन्तर से उनकी पोशाक और रहन-सहन में आदिमकालीन सादगी से स्पष्ट अतिक्रम ज्ञात हो जाता है।
वहाँ से हम लोग नए बने हुए 'दरबार' या सभामण्डप में गए जो अभी पूरा तो नहीं बना था, परन्तु उसके निर्माण और सजावट की सादगी उस पूर्व-वर्णित 'खिलौनों के घर' से उपयोगी रूप में भिन्न थी, जिसमें से हम अभी निकल कर आए थे। यहाँ की दृढ़ता, सुविधा और उपयोगिता में अध्ययनीय समझदारी नज़र आती है। यह समस्त जाड़ेचा 'भायाद' के एकत्रित होने के लिए उपयुक्त है और इसको चारों ओर काले पत्थर की बनी हुई जल-कुल्या से सजा कर एक टापू-जैसा बना दिया गया है, जिससे वे लोग ठंडे रहें अथवा गर्मी के मौसम में शीतलता का अनुभव कर सकें। यह महल झोल के सम्मुख खड़ा है और इसमें सजावट के अन्य उपकरण भी होंगे परन्तु समय-संकोच के कारण में उन्हें देख नहीं सका। ___ अब हम जाड़ेचों के विगत इतिहास पर दृष्टिपात करें। मैं इस देश में यह पूरी आशा लेकर आया था कि इस क्षेत्र के राजवंश की प्राचीन स्थिति के अनुकूल कोई चिह्न अवश्य मिलेंगे और यह विश्वास भी था कि उन लोगों में टेस्सारियस्टस (Tessarioustus) [तेजराज?] के वंशजों की पहचान हो सकेगी, जिसके राज्य पर ईसा से दो शताब्दी पूर्व मीनान्डर और अपोलोडोटस ने अभियान किया था, परन्तु, मुझे यह जान कर बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि कच्छ में जाड़ेचों की स्थिति मुस्लिम-विजय काल की परिसीमा में ही थी और स्वतन्त्र राज्य के रूप में उनकी शक्ति तीन सौ वर्ष से पूर्व की नहीं थी। जाड़ेचों की वंशावली पूरे तीन सौ वर्षों में सीमित है, जिसमें केवल तीन-चार ही ऐसे तथ्य मिलते हैं कि जो सच्चे इतिहास में लागू हो सकते हैं; अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध होने पर भी ये महत्व
' होगार्थ (Hogarth) सुप्रसिद्ध अंग्रेजी चितेरा और कोरणीकार था । उसका समय १६६७
से १७६४ ई. तक का था। वह उस समय के प्रत्येक अविवेकपूर्ण कार्य पर व्यड़ ग्य-चित्र बनाता था। ऐसे चित्रों की एक प्रदर्शनी अब तक भी उसके मकान में लगी हुई है, जो होगार्थ-गली (Hogarth-Lane), लन्दन में है । उसकी अन्य कृतियाँ भी उस संग्रहालय में प्राप्त है। यहां ऐसे ही एक 'चुनाव' (व्यड़ ग्यचित्र) से तात्पर्य है। २ बेल्जिअम-निवासी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org