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पश्चिमी भारत की यात्रा इस नाम के दो ही राजा हुए हैं, परन्तु लम्बी वंशावली में लाखा और रायधन जैसे अधिक प्रसिद्ध नामों की आवश्यक परिवर्तन के साथ प्रावृत्ति का अधिक बार होना स्पष्ट है । शहर का जो कुछ भाग मैं देख पाया वह तो महलों में जाते समय भार्ग में ही देख सका और यदि वही सम्पूर्ण नगर का प्रतिनिधि भाग था तो और भागों को न देखने से कोई दुःख नहीं हुआ।
बालक राजा को एक सिंहासन पर बैठाया गया, जो रजवाड़ा के राजाओं के सामान्य सिंहासनों से भी ऊँचा था, शायद इसलिए कि वह 'साहब लोगों की कूरसियों' से ऊपर दिखाई पड़े, जो राजपूत-दरबारों में कभी नहीं लगाई जातीं। लम्बा दीवानखाना जाड़ेचा जागीरदारों से खचाखच भरा था और ज्यों ही हम प्रविष्ट हुए, दूसरे सिरे से भाटों ने भूतपूर्व जाड़ेचा वीरों के नाम और पराक्रम का बखान शुरू कर दिया । औपचारिक रूप में आवश्यक समय तक बैठने के बाद स्वयं बालक राव ने हमको विदाई दी और हम रतन जी के साथ 'भुज के शेर' और शीशमहल देखने गए; ऐसा एक-एक शीशमहल रजवाड़ा के प्रत्येक रईस के राजमहल में होता है । इस विशाल प्रदर्शनीय मकान पर अस्सी लाख कौड़ी का धन (कच्छ राज्य का तीन वर्ष का राजस्व) खर्च किया गया था--परन्तु, इसको देखने पर इसे बनवाने वाले राव लाखा में किसी सुरुचि अथवा विवेक का होना नहीं पाया जाता; उसने अपने पूर्वज द्वारा कंजूसी से जमा किए हए खजाने का इस प्रकार अपव्यय मात्र किया था। इसका अंतरंग भाग सफेद संगमरमर का है, जिसमें सर्वत्र काच जड़े हुए हैं, जिनमें से प्रत्येक को चारों ओर सोने के अलंकरण द्वारा पृथक् बताया गया है। छत से रोशनी के झाड़ लटक रहे हैं और उस पर भित्ति-चित्र बने हुए हैं ; फर्श पर चोनी टाइलें जड़ी हुई हैं और वह डच लथा अंग्रेजी सुरोली घडियों से भरा पड़ा है, जिन सबको एक साथ चालू कर दिया गया तो एक पूरा डच-सहगान प्रारम्भ हो गया; दीवार के मध्य भाग में बने हुए ताक किसी मणिहार या बिसायती की दूकान की तरह काच के सामान से भरे हुए थे और दीवारों पर लगी हुई तरह-तरह की काच की मूर्तियों से भी इस उपमा में कोई अन्तर नहीं आ रहा था। इस बहुमूल्य साजसज्जा के बीच में राव लाखा का वह पलंग रखा है जिस पर उसकी मृत्यु हुई थी। इसके पाये सोने के हैं और सामने हो अखण्ड-ज्योति जलती रहती है। इस प्रकार यह पलंग जाड़ेचों के कुलदेवतामों में सम्मिलित कर लिया गया है और यदि इसकी नश्वर सामग्री बहुत लम्बे समय तक बनी रही तो यह राव लाखा के उत्तराधिकारियों द्वारा निरन्तर पूजित होता रहेगा । इस बड़े कक्ष के चारों ओर एक बरामदा है जिसकी फर्श पर भी टाइलें जड़ी हुई हैं और दीवारों पर एक विचित्र बेमेल आकृति-चित्रों का संग्रह
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