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प्रकरण - २२; राव देसल से मुलाकात
[ ४६५ लखपत स्थान पर डाक का दस्ता भेजने का प्रस्ताव कर दिया। इस प्रकार पूर्वीय कहावत के अनुसार उन्होंने मुझे 'कुआँ और खाई के बीच' रख दिया क्योंकि यदि में इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता हूँ तो मुझे एक क्षण भी न ठहर कर इसी समय रवानो हो जाना चाहिये और अपने पूर्वाभिमत जाड़ेचों के इतिहास और परम्पराओं की खोज का विचार छोड़ देना चाहिए। प्रतः मैंने भुज में छत्तीस घण्टों का अच्छे से अच्छा उपयोग करने तथा अपने कार्य को पूरा करके माण्डवी पहुँचने तक हवा की अनिश्चित स्थिति मान लेने का निश्चय किया। मैंने शीघ्र ही अपना विचार प्रकट कर दिया और मेरे मेजमान की उत्साहपूर्ण कृपा के फलस्वरूप उनकी निजी जानकारी के साथ-साथ जल्द ही मुझे भाट और उनकी बहियां भी उपलब्ध हो गईं। रीजेन्सी के प्रमुख और समझदार सदस्य आदरणीय रतनजी ने अपने लम्बे और रोचक वार्तालाप के अन्तर्गत जाड़ेचा शासन का पूरा-पूरा ज्ञान कराया और यह भी बताया कि इसमें और राजपूत शासन-पद्धति में कहाँ-कहाँ अन्तर पड़ता है। वस्तुतः उन्होंने पूरा समय मेरे साथ बिताया और बड़े ही कृपापूर्ण एवं सभ्य तरीके से मेरे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर धैर्य के साथ लिखाते रहे-इसी [बातचीत] के आधार पर मैं भुज के वर्णन का उपसंहार करता हूँ।
प्रातराश के बाद भुज के मुसाहब, रीजेन्सी के सदस्य और उस समय राजधानी में उपस्थित सभी जाड़ेचा सरदार स्वागत के रूप में मुझ से मिलने आए। इस असाधारण रईस-समाज के लोगों की साहसिक प्राकृति और रीति-रिवाजों को देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई; ये लोग, वास्तव में, बड़ी अच्छी जाति के मनुष्य हैं, परन्तु उतने लम्बे नहीं हैं जितने कि मैंने समझ रखे थे और इनके वर्ण में भी पूर्वीय राजपूतों से कोई विशेष भिन्नता नहीं है-केवल ठोड़ी पर बीच में से हजामत के कारण दोनों ओर निकली हुई लम्बी-लम्बी उलटी दाठियों से ही इनकी शकल में कुछ अन्तर जान पड़ता है । दूसरा अन्तर जाड़ेचों की भारी-भरकम पोशाक का है, जिसमें उनका बड़ा पायजामा और ढीली परन्तु गौरवपूर्ण पगड़ी शामिल है। दूसरे दिन दोपहर को मैं वहाँ के बालक राजा के दरबार में गया। उसकी अवस्था सात वर्ष की है और वह अपनी वंश-परम्परा में अन्तिम देसल नामधारी राजा से पाँचवीं पीढ़ी में इसी (देसल) नाम को धारण करता है। राजपूतों के समान अपने वंश के प्रसिद्ध नामों की परम्परा का पालन करते हुए ये लोग उनमें अन्तर बताने के लिए साथ में पिता का नाम भी जोड़ देते हैंइस प्रकार वर्तमान राजा देसल भारानी अर्थात् भार का पुत्र देसल कहलाता है, जो देसल गोरानी अर्थात गोर के पुत्र देसल से भिन्न है, इत्यादि। इस वंश में
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