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________________ ४६४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा यहाँ तक कि राव लाखा की छतरी में, जो बहुत नई और ठोस बनी हुई है, जरा सा भी नुकसान नहीं हुआ। इनकी बनावट राजपूताना के स्मारकों से भिन्न है क्योंकि वहाँ तो चबूतरे पर खुले खम्भों पर गुम्बज टिका रहता है जब कि यहाँ पर ये पत्थर को पर्दी (पतली दीवार) या जाली से घिरे रहते हैं-मानों उनके कारण अपवित्रता अन्दर नहीं पा सकती। इनमें होकर मैंने राव लाखा' का पालिया देखा जिसमें घोड़े पर सवार, हाथ में बल्लम लिए हुए उसकी उभरी हुई आकृति बनी हुई है। इसके दोनों ओर बराबर-बराबर संख्या में छोटे-छोटे पालिये बने हुए हैं, जो उसकी रानियों और दासियों के हैं जिनको उस अवसर पर 'सत' चढ़ा था। पालियों के पास ही, अथवा हमको छतरियाँ कहना चाहिए, एक गदा के आकार का खम्भा बना हुआ है, जिसके सिर पर दीपक रखने का स्थान खोखला करके बनाया गया है, जिससे राजपूत-दाह क्रिया के साथ मुसलिम तरीके का भी सूचन होता है। वास्तव में, जाड़ेचों ने इतनी बार मत-परिवर्तन किया है कि अब उनके लिए यह कहना कठिन है कि वे किस धर्म के अनुयायी हैं । इन सभी समाधि-स्थलों पर छेनी से बनाई हुई प्राकृतियों से ज्ञात होता है कि ये योद्धाओं के अवशेषों पर खड़े किए गए हैं-केवल एक समाधि ऐसे आदमी की है, जो अपने हाथ से मरा था। इस पर एक ऐसे आदमी की आकृति बनी है जिसने घुटने टेक रखे हैं और वह शाप देने की मुद्रा में कटार को अपने सीने की प्रोर ताने हुए है। सम्भवतः यह किसी चारण या भाट के संस्मरणीय 'त्रागा' का सूचक है, जो अत्याचारी से बदला लेने का एकमात्र प्रकार उसके वश में [होता था। भूजनगर केवल तीन शताब्दी पुराना होने का दावा कर सकता है अतः जाडेचों के विषय में मेरे द्वारा शिलालेखों की खोज करना बेकार था; परन्तु, कुछ पालिए ऐसे थे जिन की साधारण वेदियों पर पुराने लेख मौजूद थे, जो समय के प्रभाव से मिट कर दुष्पाठ्य हो गये थे। वापस लौटने पर मुझे रेजीडेण्ट साहब और उनके सहायक लेफ्टिनेंट वाल्टर मिले; उन्होंने ऐसा स्वागत किया कि ऐसी यात्राओं में प्रायः होने वाली जो कुछ छुटपुट असुविधाएं हुई थीं उन सब की भरपाई हो गई। सिन्धु नदी] की पूर्वीय भुजा पर पहुंचने की मेरी उत्सुकता को जान कर मिस्टर गाडिनर ने तुरन्त ही ' इस स्मारक के प्रशंसनीय और सही खाके के लिए मैं पाठकों को कैप्टन पाइण्डले (Capt. Grindley) लिखित 'सिनेरी प्राफ वैस्टर्न इण्डिया' (Scenery of Western India) नामक पुस्तक पढ़ने का अनुरोध करूंगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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