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________________ प्रकरण - २२; काठियों को राजधानी [४६३ प्रश्नवाचक मुद्रा में सिर हिला-हिला कर देखते थे; यह दृश्य उस समय देखने में प्राता था जब मशाल की रोशनी उनके दाढ़ी वाले उन चेहरों पर पड़ती थी, जिन पर फिरंगी की हरकतों से उत्पन्न हुआ आश्चर्य भी स्पष्ट रूप में अंकित था। यह गेरार्ड डो (Gerard Dow)' अथवा स्कलकेन (Scalken) के देखने योग्य दृश्य था और कच्छ में घोड़े की पीठ पर बिताई हुई रात्रि के अनुरूप था। बहार्ड (Burckhardt) ने कहा है कि जब वह वादी मूसा (Wady Mosa) और हारूं Haron) की मजारें देखने गया और वहाँ के खण्डहरों में शिलालेखों को खोज करने लगा तो लोगों ने उस पर पूर्ण अविश्वास करते हुए उसे कोई दफ़ीना खोजने वाला जादूगर समझा; और पूरे भारत में यही धारणा फैल गई; यहाँ तक कि मुझे तो लोग अच्छी तरह जानते थे परन्तु फिर भी ऐसे कम ही थे जो मेरे शोध-कार्य को लक्ष्मी की अपेक्षा सरस्वती से अधिक सम्बद्ध मानते हों। फिर भी ऐसी धारणा का बिलकुल ही अादर न करना भी संगत नहीं होगा क्योंकि पूर्वीय अत्याचारों के शिकार बने हुए इन देशों के निवासी अपने धन-माल को सुरक्षित न मानते हुए उसे जमीन के अन्दर गाड़ने के अतिरिक्त स्वभावत: यह भी समझते हैं कि इस तरह के लेखबद्ध पत्थर उन स्थानों के सूचक हैं जहां ऐसे खजाने गड़े होते हैं। दिन निकलते ही भूज की पहाड़ियाँ दिखाई देने लगों और उनकी नंगी चोटियों पर आसमान में खड़ी परकोटे की दीवारें और बुर्जे यद्यपि उस सुनसान घाटी को एक प्रकार की सुन्दरता प्रदान कर रही थीं परन्तु उन्हें देख कर जाड़ेचा वास्तुविद् को चतुराई का कोई विशेष प्रमाण प्राप्त नहीं हो रहा था। पिछले भूचाल का ही एकमात्र आक्रमण इन पर हुआ था, जिससे बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं परन्तु वर्तमान शासन में उनकी मरम्मत कराने की सूझ-बूझ भी नहीं रही। सूरज उगते-उगते में पोलिटिकल एजेण्ट मिस्टर गाडिनर के निवास स्थान पर पहुंचा तो वे पहले से ही 'तन्दुरुस्ती के लिए हवाखोरी' करने निकल गए थे; बीच का समय पूरा करने के लिए मैंने कच्छ के रावों के समाधि-स्थलों की ओर सीधा रास्ता पकड़ा। ये स्मारक झील के पश्चिमी किनारे पर बने हुए हैं, जिसके बीच में एक टापू भी है। इन स्मारकों में पुरातत्व और चित्रकला दोनों ही विषयों के आकर्षक पदार्थ मौजूद हैं । सन् १८१८ ई० के भूकम्प ने जाड़ेचों के इन गौरवपूर्ण स्मारकों में तहलका मचा दिया था, परन्तु सामान्य पालिए अक्षुण्ण खड़े रहे। कुछ स्मारक तो गिर कर ढेर हो गए और कुछ वैसे ही रहे, . व्यंग्यचित्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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