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प्रकरण - २१; तरुणनाथ
[ ४६१ पत्ते चढाए और धूप-दानी घुमाई तब तक मैं प्रतीक्षा करता रहा। मैंने भारत में अब तक जितने समाधि-स्मारक देखे हैं उनमें ये सब से विचित्र हैं और सन्दर्भो से प्रतीत होता है कि स्पष्ट रूप से ये 'बाल' के पुजारियों से सम्बद्ध हैं। ये बहुत ही छोटे-छोटे हैं और इनकी सीढ़ियां एक-केन्द्रीय वृत्तों के आकार में बनी हुई हैं ; बीच में (केन्द्र-बिन्दु पर) एक स्तम्भ खड़ा है-वह इस प्रकार है
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इसी श्मशान भूमिके खण्डहरों में रहने वाले इस एकाकी प्राणी से मैंने बातचीत शुरू की, परन्तु या तो वह अपने सम्प्रदाय के कर्मकाण्ड के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता था या उसने कुछ बताना ही उचित नहीं समझा। मुझे बताया गया कि वहाँ प्राय: चांदी के सिक्के मिल जाते हैं इसलिए मैं उन खण्डहरों में घूमता रहा और मेरे इस अनुसन्धान के परिणाम स्वरूप मुझे दो अच्छी दशा में सुरक्षित सिक्के प्राप्त हुए, जिनके एक ओर मुकुटधारी राजा की आकृति अंकित थी और दूसरी ओर पिरामिड की शकल का चिह्न, जिस पर उन्हीं दुष्पाठ्य अक्षरों में लेख था, जो गिरनार के शिलालेख में मिले थे। राई के खण्डहरों से लेकर प्राचीन उज्जैन (Oojein) तक समुद्र-तट पर अथवा बीच में पान वाले नगरों में समय-समय पर ऐसे ही सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिनसे स्पष्ट विदित होता है कि इस भाग पर किसी शक्तिशाली राजवंश का विशाल आधिपत्य रहा थापरन्तु, वे अणहिलवाड़ा के बल्हरा थे अथवा किसी और भी प्राचीन वंश के राजा थे, इस विषय में केवल कल्पना ही की जा सकती है। हमें आशा करनी चाहिए कि अनुसंधान की इस शाखा से जो प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है उसके कारण यह तथ्य सदा के लिए एक रहस्य नहीं बना रहेगा।
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