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पश्चिमी भारत की यात्रा सार मोड़ ग्रहण करने के विशिष्टि उदाहरण मिलते हैं क्योंकि जहाजों और व्यापार से संसर्ग रखने से बढ़कर राजपूत की प्रकृति में कोई विरोधाभास दृष्टिगत नहीं होता । मोम की मोटी-मोटी रोटो-जैसे अर्द्ध-पारदर्शक गैंडे के चमड़े जगहजगह बाजार में लटक रहे थे; ये ढालें बनाने के लिए तैयार किए गये थे; स्त्रियों के लिए चूड़े और दूसरे गहने बनाने के लिए हाथी-दांत, सूखे और ताज़ा खजर, किशमिश, बादाम, पिश्ते आदि से उन सभी स्थानों का सूचन होता था जिनसे मांडवी के व्यापारिक सम्बन्ध कायम थे। ऐसा लगता है कि कपास यहाँ के व्यापार की मुख्य वस्तु है; इसकी चपटी और गोल गांठे दबा-दबा कर बाँधी जाती हैं; मोटो सूती कपड़ा, शक्कर, तेल और घी भी बिकते नजर आ रहे थे।
स्थानीय कागज-पत्रों में माण्डवी को अब भी अधिकतर इसके प्राचीन नाम 'रायपुर-बन्दर' अथवा 'रायपुर के बन्दरगाह' से अभिहित किया जाता है, जो 'खाड़ी' अथवा 'खारी' से तीन मील ऊपर की ओर इसके पुरातन अवस्थान राई (Raen) के कारण पड़ा था। मैंने इस स्थान को जाकर देखा । दो छोटी-छोटी झोपड़ियाँ इसके अवशेषों पर खड़ी हैं जिन से किसी प्रकार के प्राचीन स्मारक का पता नहीं चलता-हाँ, एक छोटा सा मन्दिर पवित्र तरुण-नाथ (Toorunnath) का है। कहते हैं कि वे प्रसिद्ध योगी थे और अज्ञात शक्तियों से उनका सम्बन्ध था। यह भी कहा जाता है कि राईं और इससे सम्बद्ध अन्य ग्रामों के निवासियों द्वारा अपने जीवन में सुधार करने सम्बन्धी आदेशों का पालन न करने के कारण उन्होंने उक्त स्थानों को नष्ट होने का शाप दे दिया था । हिन्दू आख्यानों में आई हुई अन्य कथाओं के समान इसके साथ भी कोई गहरा ऐतिहासिक तथ्य जुड़ा हुआ है। निस्सन्देह, राई के प्राचीन राजा उनके वंशजों, (वर्तमान भुज के राजाओं) से गए बीते नहीं थे जिनको आज भी प्रायः भूकम्प के धक्के सहने पड़ते हैं। वास्तव में, वे कभी भी इस आशंका के बिना तकिए पर सर नहीं रखते कि न जाने किस समय भूचाल के कारण उनको जग जाना पड़े।
पहले, ज्वार के समय जहाज राई तक आ सकते थे परन्तु इसके शापग्रसित होने के दिन से एक मिट्टी की आड़ी दीवार ने प्रवेश को रोक दिया है
और इसके नीचे बहने वाली नदी अब 'खारी' नहीं है अपितु ताजा पानी का प्रवाह है। में तरुण-नाथ के प्राचीन मन्दिर के अवशेषों में गया और सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद एक वृद्ध 'कनफटा' योगी को (ये लोग कान चिराने के कारण कनफटा कहलाते हैं) तरुण के 'चरणपद' अथवा चरण-चिह्नों पर रहस्यमयो क्रियाएं करते हुए देखा। वह उन्हीं [तरुणनाथ ही] के सम्प्रदाय का था। जब तक उसने अपने सभी पूर्ववर्ती गुरुओं की कृत्रिम समाधि पर 'जल चढाया', हरे
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