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________________ ४५६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा को कर देता है; यह एक प्रकार का गृह कर है जिससे कोई भी मुक्त नहीं है, और कहते हैं कि इससे पचीस हज़ार रुपया वार्षिक की श्राय हो जाती है । यद्यपि माण्डवी से अरब और अफ्रीका के सभी बन्दरगाहों तक व्यापार होता है परन्तु, विशेष व्यापारिक आयात-निर्यात फारस की खाड़ी में कालीकोट (कालीकट ? ) और मस्कॅट ( Muscat ) से ही चलता है । पूर्व स्थान से यहाँ शीशा, कने ( Kanch) या हरा काच, इलायची, कालीमिर्च, सोंठ (अदरख ), बांस, जहाज बनाने को सागवान की लकड़ी, कस्तूरी (एक प्रकार की औषधि), पीली मिट्टी (Ochrc ), रंग और दवाएं आदि तथा मस्कट से सुपारी, चावल, नारियल, छुहारे खारिक ताज़ा पिण्डखजूर, रेशम श्रौर मसाले आदि का आयात होता है । तटीय चुंगी से एक लाख रुपये की वार्षिक प्राय होती बताई जाती है । मैं दिन भर नगर में और घाट पर घूमता रहा और वहाँ नए नए मनोरञ्जक दृश्यों एवं विभिन्न देश वासियों की टोलियों को देखता रहा-कालेकलूटे ईथोप, काकेशस के हिन्दकी, लम्बे-चौड़े अरब, विनम्र हिन्दू बनिए या उनका अनुकरण करने वाले प्राधे पण्डे और श्राधे-व्यापारी गोसांई, जो नारंगी रंग की पोशाक पहने घूम रहे थे। मैं सभी मण्डलियों में गया, वे नौका - स्वामी हों या यात्री और उन सब से प्रश्न भी पूछे । यात्रियों की भोर में बहुत अ/कबित हुआ। वे दिल्ली, पेशावर, मुलतान और सिन्ध के विभिन्न भागों से आए थे और समुद्रतट पर झुण्ड के झुण्ड इकट्ठे हो रहे थे या कतारें बना कर नमाज पढ़ रहे थे; उनकी स्त्रियां खाना पका रही थीं और बहुतों के बच्चे इर्द-गिर्द घूम रहे थे। सभी ने मक्का की यात्रा या हज के लिए नीली पोशाक पहन रखी थी; यह यात्रा ये लोग मुफ़्त में कर सकते हैं क्योंकि जहाँ भी ठहरते हैं मांग कर भोजन कर लेते हैं और इस प्रकार का भोजन दान करना सबाब का काम माना जाता है । इससे इस गर्वोक्ति का रहस्य सिद्ध हो जाता है कि किसी भी मुसलिम शक्ति ने न कभी कच्छ पर आक्रमण किया और न किसी प्रकार का कर ही लगाया - उनकी यह उदारता कम से कम उतनी ही राजनैतिक भी थी जितनी कि धार्मिक | एक प्रकार की प्रच्छन्न सहानुभूति परिचितों को भी, चाहे वे किसी वर्ग, धर्म या देश के हों, विदेशी भूमि अथवा स्थल पर एक दूसरे के प्रति आकृष्ट कर देती है-और शीघ्र ही मेरे चारों ओर एक भीड़ जमा हो गई । मैंने पेशावर की एक टोली को खुश कर दिया जब मिस्टर एल्फिन्स्टन के विवरण का स्मरण करते हुए मैंने उनको 'हिन्द की' कहा- वे अपने को 'लोग' या समूह ( Multitude) कहते हैं । दूसरे लोगों से मैंने शाहसुजा, की भूमि पर रणजीत के धार्मिक अभियान आदि की बातें कहीं, परन्तु उन्होंने इस पर कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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