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प्रकरण - २१; माण्डवी; व्यापारिक वस्तुएं [४५५ कभी कुछ लिखा भी था तो वह बहुत असम्बद्ध रूप में-यह कमी भी मेरे पछतावों का एक विषय बनी हुई है। ___ जनवरी २ री-भुज पर्वत श्रेणो की निनोवी (Ninovee) (द' अानविले की Ninove) चोटी अब उ.उ.पू. में दृष्टिगोचर हो रही थी; हवा बन्द हो जाने के कारण हम समुद्र की दो लहरों के बीच रात भर झकझोले खाते रहे और मेरे संघ में गंगाह्रद (Gangaridae) की सी तीव्र खलबली मची रही; और जब हम मांडवी की खारी के लंगर पर पहुँचे तो दिन के दो बज रहे थे। परन्तु, इससे भी बुरी बात यह हुई कि अब हवा ने रुख बदल लिया और वह कोटेश्वर तथा नारायणसर की दिशा में, जहाँ मेरी यात्रा समाप्त होने वाली थी, सामने पड़ रही थी, नाखुदा [ मांझी ] अब अट्ठारह घंटों के बजाय वहाँ पहुंचने में एक सप्ताह लगने की बात कह रहा था। 'सराह' [जहाज इसी मास की १५ वी तारीख को बम्बई से इंगलैण्ड के लिए रवाना होने वाला था और मैं अपने मार्ग-व्यय के चार सौ पाउण्ड जमा करा चुका था अतः अब में आशानों
और आशंकाओं की छोटी-मोटी दुविधा के बीच में न रह गया था। मेरी इच्छाओं के विषय में एक सविवरण आवश्यक पत्र कच्छ के रेजीडेण्ट मिस्टर गार्डीनर (Gardiner) के नाम रवाना कर के मैं उनके उत्तर और हवात्रों के रुख की प्रतीक्षा करता हुआ वहीं ठहरा रहा ।
दिन में जल्दी ही माण्डवी के सम्मान्य एवं आदरणीय राज्यपाल जेठाजी के पुत्र मुझ से मिलने आए। वे मेरे साथ समुद्र-तट तक गए और तोपों की सलामी के साथ एक उद्यानगृह में ले गए, जो उन्होंने मेरे उपयोग के लिए नियत कर दिया था, परन्तु मैंने अपनी लम्बी नौका में ही रहना अधिक पसन्द किया। इस तट पर मांडवी या मण्डी बहुत प्रसिद्ध है; प्रायः इसको मस्का-मण्डी (Musca-Mandi) कहते हैं क्योंकि मस्का (Musca) नामक बड़ा कस्बा केवल रुक्मिणी नदी द्वारा ही इससे पृथक् हो रहा है। नगर के चारों तरफ़ एक 'शहरपनाह' या परकोटा है जिसकी बहुत सी बुजों पर तोपें चढ़ा कर रखी हुई हैं। यद्यपि यह एक जिले का मुख्य-स्थान है परन्तु स्थिति और समृद्धि के कारण ही इसका महत्त्व अधिक बढ़ा है, क्योंकि किसी-किसी समय तो इसके लंगर पर दो-दो सौ नौकाएं ठहरी रहती हैं। इनमें से बहुत सी तो यहाँ के निवासियों की निजी सम्पत्ति हैं, जिनमें सब से समृद्ध तो गोसांई लोग हैं जो, जैसा कि पहले कहा गया है, धर्म और व्यापार को मिलाए हुए हैं और पल्ली, बनारस
आदि स्थानों में उनके व्यापार की बड़ी-बड़ी शाखाएं मौजूद हैं। यहाँ पचास से ऊपर सर्राफ़ या कोठीवाल हैं, जिनमें से "येक सौ रुपया के हिसाब से सरकार
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