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________________ ४५४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा उसने उक्त स्थान पर खाड़ी में गिरना लिखा है और हम इसी नाम के संस्कृत समस्त पद की व्याख्या करते हुए इस निर्विवाद सत्य को प्रमाणित कर सकते हैं कि प्राचीन काल में हिन्दू लोगों का भूगोल पर पूरा अधिकार था। 'भद्रा' नदी का सामान्य नाम है और उपसर्ग 'ऑर' (or) का अर्थ है 'नमक का दलदल' अथवा 'नमक की झील' या वह स्थान जहाँ नमक जमा हो जाता है-यही लूनी का लक्षण है कि वह अपने मार्ग में सर्वत्र नमक की परतें छोड़ जाती है । खाड़ी के मुहाने पर स्थित नगर का नाम 'अर-सर' (Arisirr)' है; इससे उक्त शब्दव्युत्पत्ति की और भी पुष्टि हो जाती है क्योंकि 'सर' झील का दूसरा पर्याय है और विशेषत: 'नमक को झील' का; और यदि यह नदी (भादरा) इस नगर में होकर बहती थी तो हमें इसके नाम की उत्पत्ति के विषय में पर्याप्त लक्षणों की उपलब्धि हो जाती है । अस्तु, मैंने लूनी के निकास को देखा है और मरुस्थली में इसको कई स्थलों पर पार भी किया है तथा अब में नारायण-सर में इसके मुहाने पर भी जा रहा हूँ जहाँ सिन्धु-क्षेत्र में हिन्दुओं का अन्तिम मन्दिर विद्यमान है। अब मैं वह बात कहता हूँ जो और कोई व्यक्ति नहीं कह सकता कि मैं हरिद्वार से, जहाँ से उत्तरी श्रेणी में गङ्गा अपना मार्ग काटती है, ब्रह्मपुत्रा के संगम तक (जिसको टॉलमी ने 'प्रॉरिया रेगिया' (Aurea Regia) लिखा है और जो जल-दस्युओं के लिए भी प्रसिद्ध है), सिन्धु नदी के प्रोनाम (Onam) समुद्र में संगम-स्थान तक मैं यात्रा कर चुकंगा। परन्तु, पहले को हुई इन यात्राओं के विषय में कभी पुस्तक के रूप में टिप्पणियाँ नहीं लिखी गई और लिखे हैं । अत: 'बदरी' अथवा 'वदरी' के रहने वाले बादर कहलाए। दक्षिणी राजस्थान में बदरीफल अथवा वेर के वृक्ष बहुत पाए जाते हैं। इसी से लगा हुआ प्रदेश 'सौवीर' कहलाता था जिसको विदेशी लेखकों ने Sophir या Ophir लिखा है। यदि यह अनुमान सत्य है और सुन्दर बदरीफल के कारण ही इस क्षेत्र का नाम सौवीर पड़ा हो तो यह खम्भात की खाड़ी के ऊपर ही कहीं होना चाहिए । रुद्रदामन के प्राचीन लेख में सौराष्ट्र और भारुकच्छ के तुरन्त बाद ही सिन्धु-सौवीर का उल्लेख है। अत: यह सौवीर सौराष्ट्र और भडौंव के उत्तर में और निषध के दक्षिण में होना चाहिए। विष्णुपुराण में सौबीर की स्थिति अर्बुद के सन्निकट बताई गई है । --Cunningham; Ancient Geography of India, p. 496-47 यूल (Yule) ने भी Orbadarou अथवा Oradabari की स्थिति सन्देहास्पद दिशा में ही अर्बुद के समीप मानते हुए इसको अगवली की मुख्य श्रेणी बताया है। प्लिनी ने इसको गुजरात में 'होराती' (Horatae) अथवा सौराष्ट्र की सीमा पर माना है। । वास्तव में, 'अर' का अर्थ है पारा या नरसल, उससे युक्त 'सर' को 'अर-सर' कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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