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प्रकरण - २१; कच्छ की कांठी या खाड़ी [ ४५३ स्थिति, जो कांठी की खाड़ी के प्रवेश-द्वार से दाहिनी ओर है, और दूसरी, लघु द्वीपों को संख्या जो खाड़ी के आसपास और कुछ आगे दूरी पर स्थित है । 'बेट' शब्द का प्रयोग स्थानीय बोली में 'द्वीप' के लिए किया जाता है और कोई भी मनुष्य यह मान लेगा कि यह बोलने में 'बलसेट' का ही संक्षिप्त रूप है; परन्तु यह निकला कहाँ से? यह समस्त भूमि कन्हैया, कृष्ण अथवा नारायण के नाम से पवित्र है जिनका बचपन का नाम बाल, बालनाथ या बालमुकुन्द है और किशोरावस्था में गोपाल-देवता के उपकरण (चिह्न) मुरली या मुरनी बत) और पशु (गाय) चराने की लकुटी प्रसिद्ध है । ऐसी समानताओं का अन्त नहीं है और पूर्वीय देशों में इनका अतिक्रमण बहुत गम्भीर, असम्बद्ध एवं भयानक होता है जब कि पश्चिम में उनको ऐसे चमत्कारपूर्ण और सरल ढंग से परिष्कृत कर लिया जाता है कि जिससे उनके मूल-स्वरूप से सभी सम्बन्ध सरल लगते हैं।
इन दो बड़े नामों के विषय में और भी स्पष्टीकरण और विवादास्पद बातों का समाधान करने का प्रयत्न करते हैं-'जिस खाड़ी को टॉलमी ने कांठी काल्पस के पूर्व में होना बताया है उसको पैरीप्ली (Pariple) ने इरिनस (Irinus) नाम से अभिहित किया है । 'कांठी' कोई तट या किनारे का सामान्य नाम नहीं है वरन् आज तक भी कच्छ के उस भाग के लिए प्रयुक्त होता है जो पहाड़ियों और समुद्र के बीच में है, और एरिअन ने इरिनस (Irinus) शब्द का प्रयोग केवल काल्पस (खाड़ी) के ऊपरी भाग के लिए किया होगा जो सामान्यतया 'रण' कहलाता है-यह संस्कृत के 'अरण्य' का अपभ्रंश है। इसी प्रकार पहले एरियन द्वारा प्रयुक्त एरिनोस (Erinos) वाक्यांश से 'बड़े रण' का अर्थ लेना चाहिए जो 'छोटे रण' से मिल कर सम्पूर्ण जलावेष्टित कच्छ बन जाता है । फिर, आगे का झूठा विवाद शान्त करने के लिए यह समझ लेना चाहिए कि लूनी नदी (जिसके विकास से पूरे मार्ग तक का मैंने अनुसंधान किया है और जो बड़े रण में होकर बहती है तथा इसको बनाने में सहायक है) वही है, जो 'खारो' के नाम से सिन्धु नदी के मुहाने पर उसकी पूर्वीय भुजा से मिलती है; लूनी और खारी का अर्थ एक ही है 'नमकीन नदी'। यदि लूनी का कभी स्पष्ट पृथक् मार्ग और कच्छ की खाड़ी के मुख भाग का छोटे रण में प्रवेश रहा हो तो हमें टॉलमी के 'ऑरबदरी' (Orbadri)' का तात्पर्य ज्ञात हो जाता है, जिसका
. प्लिनी की सची में अन्तिम नाम Varetatae पाता है जिसको कहीं-कहीं वर्ण-विपर्यय
से Vateratae भो लिखा है । कतिपय संस्करणों में इसी शब्द को Svarataratae भी लिखा है। यह 'सौराष्ट्र' का अपभ्रष्ट रूप हो सकता है । दक्षिण-पश्चिम भारत के निवासियों के लिए वराहमिहिर-कृ । मैं 'सौराष्ट्र' और 'बादर' दोनों शब्द
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