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प्रकरण २१
प्रन्थकर्ता का नौकारोहण; साथियों से बिवाई; ग्रन्थकर्ता के 'गुरु'; कच्छ की कांठी या खाड़ी; टॉलमी और एरियन द्वारा कच्छ की खाड़ी का वर्णन ; रण; माण्डवी की भूमि पर उतरना; वहां का वर्णन; यात्री; अरबों के जल-पोतों में प्रकोकी कार्यकर्ता, वास-प्रथा के अन्त का प्रभाव; माण्डवी के ऐतिहासिक प्रसंग ; समाधियाँ; स्मारक; सिक्के ।
पहली जनवरी, १८३३-जब हम रवाना हुए तो हवा साफ थी और दोनों ओर के समुद्री किनारे इतने नीचे थे कि जल्दी ही वे आँखों से ओझल हो गए और उन पर चमकीले नीले आसमान की छत उस नीची श्यामल रेखा तक छा गई, जिसको हिन्दू लोग इन्द्र और वरुण के लोकों की विभाजन-रेखा मानते हैं। मेरा कवित्त्व अब दुर्बल पड़ गया था क्योंकि मैं उन मित्रों से बिछड़ रहा था जिनके साथ पिछले छः मास तक रह कर मैंने उस आतिथ्य का आनन्द लिया जिसको केवल पूर्व के लोग ही जानते हैं (या जानते थे) । फिर भी इन झलकियों में जो कुछ आकर्षण है, वह मेरे मित्र विलियम्स' के कारण आ गया है, जिनके प्रभाव से मेरी सभी जिज्ञासाओं का सुविधापूर्वक समाधान हो सका और जिनके एतत्स्थानीय स्थलों एवं मनुष्यों के निजी ज्ञान से मुझे पदार्थों का चयन करने, उनके विषय में निर्णय लेने तथा सभी बातों की जानकारी प्राप्त करने में वास्तविक मार्ग-दर्शन मिला। अपने संस्मरणों की टिप्पणियों के आधार पर उनके उत्साहवर्धक अनुग्रहों को कृतज्ञतापूर्वक याद करते हुए मैं यहाँ यह श्रद्धा के भाव अर्पित करता हूँ, जो उस समय भी मेरे हृदय में ताजा थे और अब इतने वर्ष बीत जाने पर भी उनमें कोई अन्तर नहीं पाया है। यहीं पर मैंने अपने मित्र और गुरु 'ज्ञान के चन्द्रमा' यति ज्ञानचन्द्र से विदा ली, जो मेरे साथ उस समय से थे जब मैं अधीनस्थ अधिकारी के रूप में कार्य करता था और जिनका मेरे भारत-प्रवास-काल में आधे से भी अधिक समय तक साहचर्य रहा था; मेरे इस परदेश-वास में उनसे मुझे बहुत सुख और सन्तोष मिला। इस पुस्तक के पृष्ठों में तथा अन्यत्र भी मैंने प्रायः उनका उल्लेख किया है। वास्तविक बात तो यह है कि मेरे पुरा-शोध-सम्बन्धी प्रयासों के वे साकार स्वरूप थे,
। ये सज्जन बडौदा के रेजीडेण्ट और गुजरात के राजनैतिक प्रायुक्त (Political Commi
ssioner) रहे थे; इनको मृत्यु का समाचार अभी मिला है जब कि ये पृष्ठ प्रेस में चल
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