SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकररण [ ४४e पावन करने वाले, चोरों के संरक्षक देवता की शरण में सुरक्षा के लिए लौट अति हैं। बहुत से ग्रन्थकारों ने 'संगादियनों' ( Sangadians) और 'संगारियनों' ( Sangarians) का किसी जाति के मुखिया के रूप में वर्णन किया है परन्तु ( D ' Anville) द' प्रानविले उनमें सर्वोपरि है । वह कहता है - २०; संगम ; संगमधार "थीवनॉट और विङ्गटन ने इन 'सांगानियों' का समुद्र के पूर्वी किनारे के निवासियों एवं जलदस्युत्रों के रूप में कई बार उल्लेख किया है । पूर्वीय देशों में इस जाति का नाम बहुत प्राचीन काल से चला आता है यद्यपि ये अब 'संगद' नाम से नहीं पहचाने जाते, जिनका निवास सिन्ध के बहुत पास ही था और जिन्होंने उस स्थान को बहुत पूर्वकाल में ही छोड़ दिया था, जहाँ से सिकन्दर की नौसेना निकली थी ।" " Jain Education International इस पर हमारा कहना यह है कि जहाँ-जहाँ मुहाना होता है वहीं संगम भी होता है; और जहाँ-जहाँ संगम है अथवा था, वहाँ-वहाँ संगद ( Sangada ) अथवा संगमधार अर्थात् जलदस्युओं का निवास भी था; और यह संगम अथवा मुहाना चाहे द्वारका की गोमती पर हो अथवा सिंधु नदी के डेल्टा की एक भुजा बनाती हुई खारी ( खाडी ?) पर, दोनों ही जगह दस्युओं के देवता और रक्षक संगमनारायण के मन्दिर मौजूद हैं; और खारी पर 'नारायण-सर' नामक स्थल से ही, जहाँ मैं अभी-अभी जा रहा हूँ, मेरी 'वापसी यात्रा' शुरू हो जायेगी । एरिश्रन और दानविले द्वारा अमरीकृत नाम की यही व्युत्पत्ति है; यह किसी जाति का नाम नहीं है प्रत्युत उन 'जल- दस्युनों' के लिए सीधा-सादा पर्यायवाची शब्द है जो १ सिन्ध से गुजरात तक समुद्री तट पर धावा मारने वाले जलदस्युओं को 'सांगा नियन' कहा गया है, सम्भवतः इसलिये कि ये सिन्धु के समुद्र - सङ्गम के पास रहने वाले थे; सांगानियन लोग प्रायः हिन्दू होते थे और यात्रियों के साथ उतनी क्रूरता का व्यवहार नहीं करते थे जितना कि बलोची लुटेरे किया करते थे। धीवनॉट को सांगानियनों का कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं था, परन्तु उसने उनके विषय में ग्रमानुषिक व्यवहारों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है कि 'उनके पास तीर और तलवार के अतिरिक्त कोई शस्त्र नहीं होता और सामने लाने वाले किसी भी प्राणी को वे जीवित नहीं छोड़ते; जिनको वे बन्दी बना लेते हैं उनकी टांगें और टखनें तोड़ देते हैं ।' दूसरे यात्री कैरेरी ( Careri ) ने इसके विपरीत लिखा है कि 'ये लोग जिनकी सम्पत्ति लूट लेते हैं उनको दास नहीं बनाते । ये लोग 'सांगानों' और 'राणा' कहलाते हैं । ये सम्पत्ति तो पूरी लूट लेते हैं, परन्तु शरीर को क्षति नहीं पहुँचाते हैं । ये सिन्ध र गुजरात के बीच में रहते हैं और कुछ लोग पास ही समुद्री द्वीपों में बसे हुए हैं ।' -Indian Travels of Thevenot and Careri, Intro., xxii; xxxvi. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy