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________________ ४४८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कुछ वागेर लोगों, बालों और अरबों इत्यादि के संघ के साथ कड़े मुकाबले के बाद इस तूफान (युद्ध) में मारा गया अथवा कहीं चला गया । इस वीरअभियान में आक्रामकों को भी हानि उठानी पड़ी; जो लोग काम आए उनमें से एक अदम्य उत्साही ग्रात्मा का उल्लेख किया जा सकता है, जिसने उस दिन द्वारिका के जल-दस्युनों पर प्रथम और अन्तिम सशस्त्र वीर आक्रमण किया था । ऐसा जान पड़ता है कि कप्तान मेरोट ( Captain Mairott ) युद्ध-व्यवसाय के लिए ही जन्मा था और उसमें वे सभी उच्च और वीरतापूर्ण भावनाएं मौजूद थीं, जो इस व्यवसाय से सम्बद्ध होती हैं । नसेनी की चोटी से फिसल कर जहाँ वह गिरा था वही स्थान उसकी छतरी बनाने के लिए चुना गया; परन्तु इसी स्मारक से सन्तुष्ट न होकर उसके मित्रों ने इस वीर युवक की याद में भूमि के सबसे ऊँचे निकले हुए भाग पर एक खम्भा खड़ा किया है और जैसा कि एक अन्य साहसी उदार सैनिक मारसियू ( Marceau ) के विषय में कहा गया है, मेरोट ( Mairott) के लिए भी कह सकते है कि 'उसका जीवनवृत्त संक्षिप्त, वीरतापूर्ण और गौरवयुक्त था' उसे वही मौत मिली जिसके लिए उसकी सतत कामना थी । यद्यपि वह अपने सह-अधिकारियों की स्मृति में अब भी जीवित है, परन्तु उसके दूर- देशवासी मित्रों को यह जान कर संतोष होगा कि हिन्दुत्रों ने एक योगी का निवास वहाँ स्थित करके उस स्थान को पवित्र बना दिया है और जब कभी कोई नाविक जगत-अन्त रीप को पार करता हुआ उस स्थान पर - उसी भूमि की मिट्टी में मिल जाने के लिए नहीं - वहाँ जाता है और पूछता है कि यह खम्भा क्यों खड़ा किया गया है तो उसको पूरी कथा [उसके] नैतिक आचरण के साथ सुना दी जाती है । तो यह है 'जगत्कूंट' के जल- दस्युओं [ के इतिहास ] की प्रद्यतन रूपरेखा | यदि हम इसको विवरणों से भर सकें अथवा और पीछे के समय तक पहुँच कर (Larice ) या सौराष्ट्र के समुद्री राजाओं का वृत्तान्त प्राप्त कर सकें तो इसमें और भी रस पैदा हो सकता है; परन्तु हमें मिले हैं कुछ कोरे तथ्य, जिनमें शताब्दियों का अन्तर है; सिकन्दर से दूसरी शताब्दी में पेरीप्लुस ( Periplus ) के कर्ता तक, आठवीं शताब्दी में चावड़ों की राजधानी देवबन्दर के विनाश से उन्नीसवीं शताब्दी में द्वारिका और बेट तक वही लुटेरे मौजूद थे और उसी नाम के - क्योंकि सिकन्दर के सङ्गादियन ( Sangadians) ही वे 'संगमधारी' [संगमधर ? Sangum dharians ] हैं जिनके बारे में हम कहते हैं कि वे ] नदी और समुद्र के पवित्र 'संगम' के लुटेरे हैं, जहाँ से वे समुद्र में लूटमार करने जाते हैं और फिर वहीं इस पूरी खाड़ी, बन्दरगाह और संगम को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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