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________________ प्रकरण - २०; अन्तिम बाधेल; वागेर, माणिक गया है कि इसके बाद उसने वह काष्ठ वापस बेट भेज दिया । संगम के अन्तिम 'धाती' संग्राम के समय तक इन जल-दस्युओं के इतिहास में और कोई उल्लेख योग्य बात नहीं है । उसके दादा का मुकाबला एक अंग्रेजी युद्धपोत से हुआ था जिससे उनको बड़ा आश्चर्य हुआ ( क्योंकि वैसा जहाज उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था ) और उस [ जहाज ] ने शीघ्र ही उनके जहाजों को नष्ट कर दिया तथा उनको अपने अधीन कर लिया । तदनन्तर, उदारचेता कर्नल वॉकर ने अपने शान्तिपूर्ण तरीकों से उनको प्रायद्वीप शान्ति स्थापना की सामान्य व्यवस्था में सम्मिलित कर के, जल- दस्युता की प्रादतों से विमुख कर दिया । परन्तु कहते हैं कि, उसको सन्धि का पालन नहीं हुआ और गायकवाड़ के कतिपय अफसरों के दुर्व्यवहार के कारण जल-दस्युत्रों को उसके सेनासन्निवेश के विरुद्ध पुनः उठ खड़ा होना पड़ा। उसी समय त्रीकमराय के पुजारी को, जो संग्राम का प्रधान था, अपनी व्यवस्था को छोड़ने के फलस्वरूप समुद्री लूट के लिए तैयार होना पड़ा। इस घटना ने शङ्खोद्वार के स्वामी के भाग्य का निर्णय कर दिया और जिस चोट ने द्वारका के वागेरों को नष्ट किया था उसी ने बेट के बालों का अस्तित्व भी मिटा दिया । सम्मान्य कर्नल लिंकन स्टॅनहोप की अध्यक्षता में बदले के लिए किले पर ग्राक्रमण में जो शीघ्रता और तीव्रता आई उसने संग्राम को सन्धि के लिए विवश कर दिया और उसने बेट को समर्पण कर के अपने स्वामी गायकवाड़ द्वारा नियत खानगी लेकर आरामरा में रहना स्वीकार कर लिया । यह मान लेना चाहिए कि उसका यह प्रात्म-समर्पण किसी अंश तक हमारे सुरक्षावचन से सम्बद्ध था; परन्तु, स्वाभाविक ही है, आरामरा अब संग्राम के लिए 'आराम' की जगह नहीं है; अन्तिम बाधेल को [ वहाँ से भी ] हटा दिया गया है और वह कच्छ में शरणार्थी बन कर रह रहा है । [ ४४७ जो द्वारका के वागेर बहुत लम्बे समय तक आरामरा के बाधेलों के साथसाथ इस समुद्र में प्रातंक जमाए रहे थे उनके विषय में भी यहाँ कुछ कहना श्रावश्यक है । वे भुज के जाड़ेचा वंश की एक मिश्रित शाखा में हैं । उनमें से एक बरा नामक व्यक्ति, जो चेहरे पर वीभत्स मूछों का जोड़ा रखने के कारण 'मूंछवाल' कहलाता था, राणा सोवा के समय में यहाँ आया था और उसीके वंश में उसने अन्तर्जातीय विवाह कर के गोमती अथवा द्वारका के थाने पर अधिकार प्राप्त किया था । उसके पुत्र से एक नीच जाति की स्त्री से सन्तान हुई और उन्होंने 'माणिक' अथवा 'रत्न' विशेषण के साथ वागेर नाम ग्रहण किया । इस वंश के अन्तिम चार राजा महप ( Mahap ) माणिक, सादूल माणिक, सामीह (Sameah ) माणिक और मलू माणिक हुए । मलू अपने सब सगे-सम्बन्धी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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