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भीम
प्राग
देसिल,
४]
पश्चिमी भारत की यात्रा समुद्री राजाओं के इतिहास में घटना-प्रधान युग का ही नहीं गुजरात के सुलतानों के इतिहास का भी सूत्र मिल जाता है ।
नीचे दी हुई समानान्तर सूची से तत्कालीन योग्य और अयोग्य व्यक्तियों के वंशजों का पता चलता है; रायमल से पैंतालीस वर्षीय संग्राम तक नौ राजा हुए और कुख्यात भार से उसके वर्तमान वंशज तक, जिसका भी वही अशुभ नाम है, कुल ग्यारह क्रमानुयायी हुए हैं । राना रायमल
राय भार अखैराज
मेघ
तमाचो संग्राम
रायधन भजराज (भोजराज ?) दादोह (दूदा ?)
गोर बाहप
लाखो मखबाई [भाई ?] Makha bae गोर संग्राम
रायधन भार, और देसल [भाई] राना भीम ने मसकट (Muscat)' के इमाम को, सम्पूर्ण शक्ति लगा कर जल और थल मार्ग से, अपने पर आक्रमण करने का अवसर दिया क्योंकि उसके नाविकों ने इमाम के प्रजाजनों पर कुछ ज्यादती की थी। कच्छ का राव देसल भी इस अवसर पर मसकॅट के जहाजी सेनापति के साथ था और उसने कच्छगढ़ किनारे पर कलोरकोट को गोलाबारी से उड़ाने के लिए बनवाया था। जल-दस्युओं के द्वीप पर कई बार फौजें उतारी गई परन्तु दुर्ग की सुदृढ़ता ने उनकी सम्मिलित शक्ति एवं प्रयास का उपहास मात्र किया; और समुद्री मार्ग की भूल-भुलैया में बहुत से पोतों के तितर-बितर हो जाने एवं अपने सहायक भुज-पति द्वारा कच्छगढ़ के आसपास की भूमि का ग्रास उत्कोच के रूप में प्राप्त कर लेने के कारण नौ-सेनापति को अपना बेड़ा लौटाना पड़ा तथा शंखनारायण के मन्दिर के काष्ठ-कपाटों को ही विजय-चिह न के रूप में प्राप्त कर के सन्तोष कर लेना पड़ा। इन किवाड़ों का उसने एक पलंग बनवा लिया, परन्तु रात को उसकी खाट उलट गई और जब उसे चेत हुआ तो वह काफ़िर-पलंग का तोफा उसके ऊपर सवार था। परम्परागत कथाओं में कहा
• अरब का मुख्य बन्दरगाह । यह १५०८ से १६५० ई. तक पुर्तगालियों के अधिकार में - रहा था।
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