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________________ प्रकरण - २०; जोठवा और बाघेल [ ४४५ रही जिस प्रकार जहाज के तख्ते पर रहती थी; वे सब मिल कर भी उसे तख्त के सामने झुका न सके । अस्तु, इन उदारचेता बादशाहों की दयालुता का अनुभव करने वाला वह पहला ही व्यक्ति नहीं था । निदान वह जल-दस्यु अपना सिर गँवाने के बजाय विशेष उपाधि प्राप्त करके बेट लोटा । बाद में उसने कच्छ के जाड़ेचा राव की पुत्री से विवाह किया और जेठवों के नगर वारासरा (Warrasura ) के प्राक्रमण में मारा गया। संगमधर से तीन पीढ़ी बाद नई उपाधिधारो 'रिना' (राणा) सोवा ( Rinna Sowah ) हुआ, जो साहस और निर्भीकता में अपने पूर्वज से किसी भाँति कम नहीं था । उसकी वीरता का बखान करने के लिए हम वंशावली की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली भाषा की कल्पना नहीं कर सकते - "उसने गुजरात के बादशाह मुज़फ्फर को 'सरना' अथवा संरक्षण दिया" और उसे शत्रु को सौंपने से इनकार ही नहीं किया वरन् अपने एक जहाज में बैठा कर खाड़ी के उस पार सुरक्षित भेज दिया और स्वयं ने आरमरा के घेरे में डटे रह कर रक्षा करते हुए गौरव के साथ प्राणत्याग किया। इस जल-दस्यु का यह आचरण (बारह पीढ़ी पूर्व कच्छ के संस्थापक खंगार के पुत्र ) कच्छ के राव भार से कितना भिन्न था, जिसने प्रायद्वीप में मोरवी के परगने के लिए अपने शरणागत सुलतान के शरीर का सौदा तय किया था ! बादशाह ने अपना वचन पूरा किया; उसने मोरबी का परगना दुष्ट जाड़ेचा के सुपुर्द कर दिया, परन्तु उसका सिर ही इस पापपूर्ण सन्धि की इनायत या 'नज़राना' था और फिर जाड़ेचा की दुष्ट भावना के प्रति घृणा एवं जल- दस्यु बाधेल के प्रति आदर भावना प्रकट करने के लिए उसने दिल्ली के दरवाज़े पर दो पालिये बनवाये जिन पर यह आदेश लिखवा दिया कि जो कोई बाधेल के पालिये के पास से निकले वह उस पर फूलों की माला चढावे तथा जो जाड़ेचा के चबूतरे के पास होकर निकले वह उस पर जूता मारे । जाम जेसा के समय तक जाम भार के पालिये को इस बेइज्जती से मुक्ति नहीं मिली; जैसा की किसी सेवा के बदले में उसे शाही महरबानी प्राप्त हुई और मनचाहो मुराद माँगने की आज्ञा मिली; इस पर उसने प्रार्थना की कि वह पालिया तुड़वा दिया जाय अथवा कम से कम उस बेइज्जती से मुक्त कर दिया जाय जिससे प्रत्येक जाड़ेचा के आत्म गौरव को प्राघात पहुँचता था । 'राना सोवा' अथवा 'सवाई' तो इस उदार जल-दस्यु की उपाधि मात्र थीनाम उसका रायमल था, जिसका पालिया ढूंढ निकालने का मुझे सन्तोष है ! जैसा कि ऊपर लिख श्राया हूँ, इस पालिया पर श्रारमरा के साके में संवत् १६२८ ( १५७२ ई० ) में उसके निधन का उल्लेख है । इस तिथि से हमको बेट के Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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