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________________ ४४४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा इस प्रतिज्ञा को उसके वीर वंशज राणा राजसिंह ने धर्मान्ध औरंगजेब के समय में पूरी की। " मुझे एक झाला-वंशीय बुद्धिमान् सरदार से मिल कर बड़ा सन्तोष हुना जिसकी बहन बेट के भन्तिम जल- दस्यु राजा को ब्याही थी । उसने अपनी वंशोत्पत्ति सम्बन्धी विचित्र कथाएं ही नहीं कहीं वरन् 'बाधेलों' की उत्पत्ति के विषय में भी बहुत सी बातें बताई, जिन्होंने पिछली सात शताब्दियों से 'मण्डल' अथवा श्रखामण्डल पर अधिकार जमा रखा था । मुझे पवित्र 'कूंट' या जगत्कूंट के एक वंश-भाट से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिसकी वंश-बही एवं राज-वंशावली में से मैंने कुछ पत्रों की नकलें कर ली थीं । श्रखामण्डल में बसने वाली इस जाति के प्रथम राजा का पिता उमेदसिंह राठोड़ था, जिसके पुत्र ने यहाँ के तत्कालीन अधिकारी चावड़ों का छल से 'बध' करके 'बाधेल' नाम प्राप्त किया था । श्रारमरा में चावड़ों की राजधानी थी और अब भी वही बाधेलों की 'तिलात' (Teelat ) अथवा राजतिलक होने की भूमि है | झाला सरदार और वंश-भाट दोनों ही मुझे इस घटना को सही तिथि नहीं बता सके न उस समय से अब तक की पीढियां ही गिना सके; परन्तु, मारवाड़ के इतिहास से यह कठिनाई हल हो जाती है जिसमें लिखा है कि मरु-स्थली अथवा महान् भारतीय रेगिस्तान में राज्य स्थापित करने वाले की एक शाखा श्रखा में भी जा कर नाबाद हो गई थी । अविवेकी राठौड़ ने चावड़ों का नाश करने में राजपूत की प्रथम भावना, 'भूमि प्राप्त करो' का ही पालन किया, परन्तु शीघ्र ही उसने और उसके परिश्रमी साथियों ने अपने पूर्ववर्ती चावड़ों की चाल अपना कर जीवन की नई धारा ग्रहण कर लो, जिनकी समुद्री लूट-पाट की आदतों के कारण, अणहिलवाड़ा के इतिहास के अनुसार, विक्रम की आठवीं शताब्दी में 'दीव' का नाश हुआ था । प्रथम बाधेल से कुछ पीढ़ियों बाद एक राजा के समय में बेट के समुद्री राजानों का उपनाम 'संगमधर' पड़ गया था । वह बहुत बड़ा कुख्यात जलदस्यु था जो वर्षों तक समुद्र पर सपाटे मारता रहा; परन्तु, अंत में उसकी धृष्टता ने उसे कठिनाई में डाल दिया और वह बन्दी बना कर बादशाह के सामने पेश किया गया । उसकी आत्मा तैमूर [ के वंशज ] के सामने भी उसी प्रकार अदम्य 3 इस प्रतिज्ञा के विषय में अधिक जानकारी के लिए 'ट्रांजेक्शन्स् श्रॉफ बी रायल एशियाटिक सोसाइटी भा० २ में मेरा लेख देखिए । इसी पुस्तक में पीछे पृ० १० की टिप्पणी भी द्रष्टव्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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