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प्रकरण - २०; मीराबाई का मन्दिर
[४४३ बाई का बनवाया हुआ सौरसेन के गोपाल देवता का मन्दिर, जिसमें वह नौ' का प्रेमी अपने मूल स्वरूप में विराजमान था; और निःसन्देह यह राजपूत रानी उसकी सब से बड़ी भक्त थी। कहते हैं कि उसके कवित्वमय उद्गारों से किसी भी समकालीन भाट (कवि) की कविता बराबरी नहीं कर सकती थी। यह भी कल्पना की जाती है कि यदि गीत-गोविन्द या कन्हैया के विषय में लिखे गये गीतों को टोका की जाय तो ये भजन जयदेव की मूल कृति की टक्कर के सिद्ध होंगे। उसके और अन्य लोगों के बनाए भजन, जो उसके उत्कट भगवत्-प्रेम के विषय में अब तक प्रचलित हैं, इतने भावपूर्ण एवं वासनात्मक (Sapphi). हैं कि सम्भवतः अपर गीत उसकी प्रसिद्धि के प्रतिस्पर्डी वंशानुगत गीत-पूत्रों के ईर्ष्यापूर्ण आविष्कार हों, जो किसी महान् कलंक का विषय बनने के लिए रचे गये हों। परन्तु, यह तथ्य प्रमाणित है कि उसने सब पद-प्रतिष्ठा छोड़ कर उन सभी तीर्थ-स्थानों की यात्रा में जीवन बिताया जहाँ मन्दिरों में विष्णु (Apollo) के विग्रह विराजमान थे और वह अपने देवता की मूर्ति के सामने रहस्यमय 'रासमण्डल' की एक स्वर्गीय अप्सरा के रूप में नृत्य किया करती थी इसलिए लोगों को बदनामी करने का कुछ कारण मिल जाता था। उसके पति प्रोर राजा ने भी उसके प्रति कभी कोई ईर्ष्या अथवा सन्देह व्यक्त नहीं किया यद्यपि एक बार ऐसे ही भक्ति के भावावेश में मुरलीधर ने सिंहासन से उतर कर अपनी भक्त का आलिंगन भी किया था- इन सब बातों से यह अनुमान किया जा सकता है कि (मीरां के प्रति सन्देह करने का) कोई उचित कारण नहीं था। यही नहीं, उसके पुत्र 'विक्रमाजीत' ने भी, जिसने बादशाह हुमायूं का सामना किया था, अपनी माता के पवित्र भक्ति-भाव को ग्रहण किया और "नित्य-प्रति गो-हत्या से अपावन हुए व्रजमण्डल से देव-प्रतिमा को लाने के लिए अपना और अपने साथी एक सौ राजपूतों का सिर देने की प्रतिज्ञा की थी"
देहावसान वि० सं० १५८४ में हुमा था। महाराणा लाखा का समय वि० सं० १४३६ से १४५४ वि० सं० तक का है । तब यह कैसे सम्भव हो सकता है कि मीराबाई राना लाखा की स्त्री हो ? क० टॉड ने इस विषय में प्रायः सभी जगह भूल की है। अन्यत्र उन्होंने मीराबाई को महाराणा कुम्भा की रानी लिख दिया है जो सरासर अशुद्ध है। पता नहीं, उनके इस भ्रम का क्या कारण है और ऐसे परम खोजी होकर भी उन्होंने तथ्य को न ढूंढकर परस्पर विरोधी बातें कैसे लिख मारी हैं ? ' माठ पटरानियों और नवीं मीराबाई (?) • सैप्फो (Sappho) एक ग्रीक कवयित्री थी जो बहुत ही वासनात्मक कविता लिखतो
थी-उसी के नाम पर ऐसी कविताओं के लिए यह विशेषण बना है। ३ विक्रमादित्य मीरा बाई का देवर था जो महाराणा रत्नसिंह के बाद गद्दी पर बैठा था।
उसका राज्यकाल १५३१ ई०, १५३५ ई. था।
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