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________________ ४४२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा हुआ था और जिसका सफाया हो जाना पूर्वीय देशों में बृटिश सत्ता से प्राप्त लाभों में नगण्य नहीं है। जिस प्रकार साइरो-फोनीशियन (Syro Phoenician) और कैल्टिक लोगों में सूर्य-देवता बेलिनस (Bclenus) अथवा अपोलो (Apollo) नाविकों के संरक्षक थे, उसी प्रकार लारिस और सौराष्ट्र के समुद्री-राजाओं ने इस भूमि में बुद्ध-त्रिविक्रम से परिवर्तित कर के इनके देवत्व और पूजा पर एकाधिकार जमा लिया था; यह भी कम विचित्र बात नहीं है कि हिन्दुनों और पौराणिक ग्रीकों में अपोलो (विष्णु) और मरकरी (बुध) में समान रूप से गुण-विनिमय सम्पन्न हुआ। गोलो के तीरों को, जिनके प्रभाव से वह समद्र की तूफानी लहरों पर शासन किया करता थो, यहाँ उसकी पुजारिन ( Prietess) से कैल्टिक नाविकों ने खरोद लिए थे, जो अपने सम्भावित लाभ का एक अंश घूस के रूप में देवता को चड़ाते थे; इस बात का विचार नहीं था कि उनके मनोभाव नियमानुकूल थे अथवा नियम-विरुद्ध । इसके परिणाम-स्वरूप हिन्दुओं के इस देवता के जितने मन्दिर जगतकूट में हैं उतने अन्य किसी क्षेत्र में नहीं हैं (ये मन्दिर उतनी ही संख्या में हैं जितने उसके रूप हैं)। इनमें सब से प्राचीन शंखनारायण का मन्दिर है और देखा जाय तो यही सब से सही और उपयुक्त पूजा का पात्र है, परन्तु [विष्णु के] अन्तिम रूप 'रणछोड़' ने इसको दबा लिया है। रणछोड़ का वर्तमान मन्दिर डेरा (?) (Decah) अथवा तम्बू के आकार का है और अत्यन्त आधुनिक है क्योंकि इसको लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले जोम ने औरंगजेब के आक्रमण के समय बनवाया था; परन्तु, इस बीच में यह प्रतिमा कोई एक दर्जन बार चोरी चली गई या हटा दी गई और पुनः प्राप्त कर ली गई । भक्तों द्वारा उसके पार्थिव शरीर के प्रति ही अधिक श्रद्धा व्यक्त करने वाली यह बात भी कम विचित्र नहीं है कि जहाँ-जहाँ उस [कृष्ण] का मन्दिर बनाया गया है वहाँ-वहाँ उसको माता मथुरा के यादव-राजा वसुदेव की पत्नी देवकी का भी एक मन्दिर निर्मित हआ है। जब मैं मन्दिर में दर्शन करने गया तो 'देवता शयन कर रहे थे' और क्योंकि सामने के तट पर पहुँचने के लिए मेरा जहाज तैयार खड़ा था इसलिए 'अवकाश' होने तक ठहरने का निमन्त्रण में स्वीकार नहीं कर सका। परन्तु, जो देवालय मेरे लिए सब से अधिक आकर्षण की वस्तु सिद्ध हुआ वह था मेरी भूमि मेवाड़ की रानी लाखा राना की स्त्री' सुप्रसिद्ध मीरां । मीराबाई के पति का नाम भोजराज था, जो महाराणा संग्रामसिंह (सांगा) का द्वितीय पुत्र था और पिता के जीवन-काल में ही कालवश हो गया था। महाराणा संग्रामसिंह का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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