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प्रकरण - २०; शंखोद्वार के शंख
[ ४४१ शंखों का सब से बड़ा ग्राहक बंगाल है। मझे याद है कि प्राचीन नगर ढाका में एक पूरा बाजार शंख काटने वालों का है और ये सभी शंख बेट से आते हैं। गायकवाड़ सरकार के (समद्री) किनारे खेतों की तरह शंखों से भरे रहते हैं, जिनको बम्बई का एक पारसी व्यापारी खारवा नाविकों से बीस 'कौड़ी' (पांच से छः रुपये) प्रति सैंकड़ा के भाव से ठेके पर ले लेता है और वहां से जहाज में भर कर बंगाल भेज देता है । अन्तिम लदान दो ही दिन पहले हुआ था और आधी दर्जन में से मुझे केवल एक ही शंख ऐसा मिला, जो प्राचीन काल के वीरों द्वारा काम में लेने योग्य हो सकता था। राजपूतों के वीर-काव्यों में 'शंखनाद' का निरन्तर उल्लेख आता है और यह इन लोगों में उसी प्रकार प्रचलित है जैसे हमारे यहाँ पश्चिमी योद्धाओं में पीतल का बाजा बजाना। दो मुख्य शंखों का उल्लेख 'महाभारत' (Great-war) में आता है अर्थात् स्वयं कृष्ण का शंख 'पाञ्चजन्य' (Panchaen) जो इतना भारी था कि उसको वे ही उठा सकते थे
और दूसरा उनके मित्र तथा बहनोई (Brother-in-arms) अर्जुन का, जो उलट छिद्र के कारण दक्षिणावर्त (शंख) कहलाता था' और जो उसके प्रतिस्पर्धी कौरवों के सेनापति भीष्म को विजय-चिह्न के रूप में प्राप्त हुआ था। इनमें से एक प्रकार का शंख 'अमोलक' (Amuluc) भी कहलाता है, जिसका 'कोई मूल्य नहीं होता'-ऐसे एकमात्र शंख का अणहिलवाड़ा के बल्हरा राजा सिद्धराज के पास होने का उल्लेख मिलता है और, कहते हैं कि वह अब रूपनगर के सोलंकी सरदार के पास है, जो मेवाड़ के दूसरी श्रेणी के सामन्तों में है। यद्यपि मैंने उनसे उनकी गौरवपूर्ण वंश-परम्परा के विषय में कई बार बातें की हैं, परन्तु उनकी इस पैतृक चल-सम्पत्ति के बारे में मुझे कभी ख्याल ही नहीं पाया।
पहले कह चुका हूँ कि जल-दस्युनों का यह दुर्ग पहले 'कलोर-कोट' कहलाता था । द्वीप के पश्चिम की ओर स्थित यह किला पूर्ण और प्रभावशाली है। इसकी ऊँची-ऊंची सुदृढ़ छतरियों में लोहे की मजबूत तोपें बड़ी चतुराई से रखी हुई हैं जिनका सबसे छोटा और सुदृढ़ मुख समुद्र की ओर है। सौन्दर्य-प्रेमियों के लिए यह सौभाग्य की बात है कि अन्तिम जल-दस्यु राजा का इस किले के ध्वंसावशेषों में दब कर नष्ट हो जाने का विचार पूरा न हो सका; और अब यह चिरकाल तक उस उत्पात के स्मारक-स्वरूप खड़ा रहेगा, जो अत्यन्त प्राचीनकाल से [अब तक] लाल समुद्र के प्रवेश-द्वार (शंखोद्वार) से कच्छ की खाड़ी तक फैला
. अर्जुन के शंख का नाम 'देवदत्त' था।
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