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________________ ४४० ] पश्चिमी भारत की यात्रा प्रवर्तक न हों) हिन्दुओं के इस दूरस्थ स्थल पर उनके द्वारा नाग-शत्र से ग्रंथप्राप्ति और यमुना में उसके साथ प्रथम युद्ध से हमको उसी साम्प्रदायिक संघर्ष की सूचना मिलती है, जिसमें यहाँ आकर उन्हें उन लोगों को भारत के उत्तर में से तथा इस गोर से निकाल देने में सफलता प्राप्त हुई थी। इसी के अनुसार उन्हें मगध के नोस्तिक राजा जरासंध से पराजित होने के कारण 'रणछोड़' नाम प्राप्त हुमा तथा अन्त में इन धार्मिक एवं गृह-युद्धों के परिणामस्वरूप ही उनकी मृत्यु हुई और सारा यदुवंश तितर-बितर हो गया जिसके वे मुख्य प्राधार शङ्खोद्वार अब भी शंखों के लिए प्रसिद्ध है । एक किनारा, जो छिछले पानी के कारण अनावृत सा हो गया है, जहाज ठहरने के स्थान के समीप ही है और यहीं पर ये शंख पाये जाते हैं। परन्तु, इस कलिकाल में 'रणशङ्क' जिसके निनाद से रण का प्रारम्भ घोषित किया जाता था, अब किसी राजपूत के हाथों की शोभा नहीं बढ़ाता; अब तो इसका प्रयोग ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गया है, जो इसके द्वारा 'प्रातःकाल देवताओं को जगाते हैं' अथवा लोगों को उनके भोग लगाने का समय सूचित करते हैं; अथवा इसका और भी महत्वपूर्ण उपयोग हिन्दूसुन्दरियों की कलाइयों के लिए चूड़ियाँ बनाने में किया जाता है। शंखोद्वार के ५ इन यादवों के विषय में मेरा विचार है कि ये सब धास्तव में बौद्ध थे और इण्डो-गेटिक निकास के थे जैसा कि इनकी बहुपतित्व की एक ही रीति से ज्ञात हो जाता है; और लमहमें सर्वोच्च जंन विद्वान् से यह सूचना मिलती है कि बाईसवां बुद्ध नेमिनाथ केवल यद ही नहीं था वरन् कृष्ण का निकट-सम्बन्धी भी था तो कोई संशय नहीं रह जाता। और, जैसा कि मैंने पहले कहा है अब तो यह घोषणा करने का मेरा पक्का विचार है कि ये यद ही 'यति' अथवा जक्सातीस (Jaxartes) के जेत (Gates) हैं जिनमें, चीनी अधि. कारी विद्वान् प्रोफेसर नुइमैन (Nueman) के अनुसार क्राइस्ट से पाठ सौ वर्ष पूर्व एक शामनीयन (Shamnean) सन्त उत्पन्न हुआ था। दोनों ही नेमिनाथ और शामनाथ का व्यक्तिगत नाम श्याम वर्ण के कारण पड़ा है-प्रथम को प्रायः अरिष्टनेमि अर्थात् श्यामनेमि और दूसरे को श्याम अथवा कृष्ण कहते हैं, जिसका अर्थ श्याम या काले रंग का होता है, और जब यह केवल परम्परागत कथा ही नहीं है अपितु द्वारका में कृष्ण के मन्दिर के भीतर बुद्ध का मन्दिर भी सुरक्षित है तो कोई सन्देह नहीं रह जाता कि वेवत्व-प्राप्ति से पूर्व कृष्ण का धर्म बौद्ध धर्म था। महाभारत का युद्ध बुद्ध से बहुत पूर्व हुआ था, यह सर्वमान्य है। फिर श्रीकृष्ण का बौद्धमतानुयायी होना कैसे संभव है ? लेखक 'बुद्ध त्रिविक्रम' नाम से भ्रम में पड़ गये जान पड़ते हैं । त्रिविक्रम विष्णु का नाम है और बुध ग्रह का इन दोनों ही देवताओं के मन्दिर द्वारका में हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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