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________________ ४ ] पश्चिमी भारत को यात्रा ___ जब १८०६ ई० के वसन्त में राजदूत-परिकर सिन्धिया के दरबार में पहुंचा तो उसका डेरा मेवाड़ के खण्डहरों में लगाया गया क्योंकि मरहठा सरदार ने राणा की राजधानी के मार्गों पर बलात् अधिकार कर लिया था। ले० टॉड ने तभी से इस देश के विषय में हमारे भौगोलिक ज्ञान की कमियों को दूर करने का काम सम्हाल लिया और उसने जो स्पष्टोक्ति की है वह निर्विवाद सत्य है कि "उस समय के बाद जो भी मानचित्र छापे गए हैं उन में एक भी ऐसा नहीं है कि जिसमें बताई गई मध्य एवं पश्चिमी भारत की स्थिति मेरे परिश्रम पर आधारित न हो।" इस कठिन कार्य को पूरा करने के लिए अपनाए गए तरीके का विवरण उसने अपने राजस्थान का भूगोल' नामक शोध-पत्र में दिया है, जो उसके 'इतिहास' ग्रन्थ के आरंभ में लगाया गया है। नक्षत्रों के निरीक्षण के आधार पर इस मार्ग के एक भाग का सर्वेक्षण करके डॉक्टर विलियम हण्टर ने, बड़ी शुद्ध रीति से कुछ बिन्दु स्थापित किए थे, जब १७९१ ई० में वे कर्नल पामर के साथ थे; और यही मार्ग उस सर्वेक्षण का आधार बनाया गया, जो मध्य भारत' के सभी सरहदी बिन्दुओं को अपने में लिए हए था अर्थात् आगरा, नरवर, दतिया, झाँसी, भोपाल, सारंगपुर, उज्जैन और वापसी में कोटा, बूंदी, रामपुरा, बियाना होते हुए आगरा आदि । रामपुरा से, जहाँ हण्टर का मार्ग-दर्शन समाप्त हुआ, उदयपुर का नया सर्वेक्षण प्रारम्भ हुआ, जहाँ से मरहठों की सेना चित्तौड़ से गुजरती हुई और विन्ध्य की पहाड़ी से निकलने वाले झरनों को पूरी तरह पार करती हुई सात सौ मील दूर बुन्देलखण्ड की सरहद पर कमलाशा (Kemlassa) तक पहुँच गई थी। १८०७ ई० में मरहठों की सेना ने राहतगढ़ (Rahigurh) को घेर लिया; लेफ्टिनेण्ट टॉड जानता था कि ऐसी लड़ाइयों में कितना समय बरबाद होता है इसलिए उसने, इस देर का लाभ उठाते हुए, एक अज्ञात और अस्तव्यस्त प्रदेश में मार्ग निकालने का निश्चय किया। एक छोटी-सी रक्षिका-ट्रकड़ी को साथ लेकर वह बेतवा के किनारे-किनारे चन्देरी पहुंचा और फिर पश्चिम को ओर ' यह ध्यान रखना चाहिए कि 'मध्य भारत' (Central India) शब्द का प्रयोग इन भु-भागों के लिए सबसे पहले कर्नल टॉड ने १८१५ ई० में किया था जब उसने यहां का मानचित्र मारकुइस प्राफ हेस्टिग्स को पेश किया था। २ चन्देरी के विषय में उसने 'इतिहास' (१.१३८) में लिखा है कि "मैं ही पहला यूरोपियन था जिसने १८०७ ई० में इस जंगली प्रदेश को पार किया-और इस काम में कठिनाइयां भी बहुत प्राई । उस समय यह स्वतंत्र था परन्तु तीन वर्ष बाद सिन्धिया का शिकार बन गया।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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