________________
ग्रन्थकर्त्ता विषयक संस्मरण
[ ५
कोटा गया तथा दक्षिण से बहने वाली सभी छोटी नदियों का मार्ग एवं मुख्यमुख्य नदियों के संगम स्थानों के बिन्दु निश्चित करते हुए उसने आगरा तक अपना अभियान जारी रक्खा । यह कार्य उसने ( उस समय पचीस वर्ष की अवस्था में ) अपने ही महान् साहस के बल पर पूरा किया; मार्ग में बहुत सी रोमाञ्चक घटनाएं हुईं और अनेक बार उसे लूट भी लिया गया । मरहठा छावनी में लौटने पर जब उसे लगा कि अभी भी बहुत-सा समय उसे मिल सकता था तो वह फिर अपनी यात्रा पर निकल पड़ा - अब की बार दक्षिण की ओर बढ़ता हुआ वह बहावलपुर से जयपुर, टोंक आदि स्थानों और फिर सागर तक चला गया । यह यात्रा एक हजार मील की हुई और जब वह वापस लौटा तो सेना का पड़ाव वहीं था जहाँ उसने छोड़ा था ।
सिन्धिया के चल दरबार के साथ वह इस प्रदेश के सर्वेक्षण में व्यस्त हो कर तब तक लगातार इधर-उधर घूमता रहा जब तक कि वह दरबार १८१२ ई० ग्वालियर में स्थायी न हो गया; और तब उसने उन भू-भागों के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की योजना बनाई, जिनमें वह स्वयं प्रवेश नहीं पा सका था ।
उसने भौगोलिक एवं स्थल - परिज्ञान- सम्बन्धी खोज के लिए श्रन्वेषकों की दो टुकड़ियां रवाना कीं। पहली, उदयपुर के पास होकर गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ, लखपत, हैदराबाद, ठट्टा, सीवन, खैरपुर और बखर तक गई और सिन्धु नदी को पार करके पुनः पार उतर कर ऊमरा-सुमरा के रेगिस्तान में होती हुई जैसलमेर, मारवाड़ और जयपुर पहुँच कर वापस उसके डेरे पर जा मिली, जो उस समय नरवर में था। दूसरी टुकड़ी सतलज के दक्षिणी रेगिस्तान में भेजी गई। इन दोनों ही अभियानों के परिचालक स्थानीय मनुष्य थे, जिनको उसने स्वयं चुन कर प्रशिक्षित किया था; वे सभी जानकार, निडर, उद्यमी और विज्ञान की जिज्ञासा में उसी के समान उत्साह से भरे हुए थे । वह कहता है 'इन दूर के प्रदेशों से अच्छे से अच्छे जानकार स्थानीय मनुष्य मेरे पास आग्रह करके अथवा इनाम का लोभ देकर भेजे जाते थे और मरहठों की छावनी में १८१२ से १८१७ ई० तक हमेशा ही सिन्धु घाटी, घाट और ऊमरा-समरा के रेगिस्तान अथवा राजस्थान की अन्य किसी रियासत से कोई न कोई देशी श्रादमी आता ही रहा ।' उसने अन्यत्र लिखा है 'यद्यपि मैं स्वयं भारतीय मरुस्थल के अन्तर में, मरुस्थली की प्राचीन राजधानी मण्डोर, इसकी उ० पू० सीमा पर हिसार के पुराने किले और पश्चिम में आबू, नहरवाला और भुज से आगे नहीं गया हूँ, परन्तु मेरी खोजी टुकड़ियों ने सभी दिशाओंों में इसके स्थलों को देखा-भाला है और मार्गों के विवरण की शुद्धता को जीवन्त प्रमाणों से सम्पुष्ट करने के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org