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________________ प्रन्थकर्त्ता विषयक संस्मरण [ करता रहा; इस प्रकार उसे सैनिक जीवन की सभी परिस्थितियों का अनुभव प्राप्त था । २६ मई, १८०० ई० को वह देशी पैदल फौज की १४ वीं रेजीमेण्ट का लेफ्टिनेण्ट नियुक्त हुआ और बाद में, उसी के शब्दों में, 'कलकत्ता से हरिद्वार तक' उसकी तलवार घूमती रही । एक अफसर ( लेफ्टिनेण्ट कर्नल विलियम निकॉल), जिसने उसी के साथ चौदहवीं रेज़ीमेण्ट में काम किया था, उस समय ( १८०० ई० ) के कर्नल टॉड के विषय में कहता है कि 'वह सरल प्रकृति का था और सभी सहकारी अफसर उसे प्यार करते थे तथा उसमें उस उदीयमानता के सभी लक्षण दृष्टिगत होते थे, जो बाद में उसने अपनी प्रतिभा के बल पर प्राप्त की थी ।' १८०१ ई० में, जब वह दिल्ली में तैनात था तो उसकी चतुराई और सफलताओं के कारण सरकार ने नगर के पास ही एक पुरानी नहर का सर्वेक्षण करने के लिए इञ्जीनियर के पद पर उसका चुनाव किया । १८०५ ई० में मिस्टर ग्रीम मर्सर ( Mr. Graeme Mercer), जो उसके चाचा का मित्र था, दौलतराव सिन्धिया के दरबार में राजदूत और रेजीडेण्ट नियुक्त होकर जा रहा था; लेफ्टिनेण्ट टॉड द्वारा इच्छा प्रकट करने पर, उसके सम्मान्य और स्वतंत्र चरित्र को ध्यान में रखते हुए उस नवयुवक अधिकारी को अपने साथ ले जाने की अनुमति उसने सरकार से प्राप्त कर ली; और, इस प्रकार एक सम्माननीय एवं उपयोगी चरित्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिससे उसके उत्साह और प्रतिभा को पूरा-पूरा लाभ प्राप्त हुआ । आगरा से चल कर जयपुर के दक्षिणी भाग में होते हुए उदयपुर के मार्ग में बहुत सा ऐसा भू-भाग था जिसका यूरोपवासियों ने बहुत कम या नहीं के बराबर सर्वेक्षण किया था । मिस्टर मर्सर का कहना है कि " लेफ्टिनेन्ट टॉड ने बड़ी ईमानदारी के साथ अपने आपको इस मार्ग के सर्वेक्षण में लगा दिया और अपूर्ण यन्त्रों के द्वारा ही अपनी सहनशीलता, लगन एवं सहज सरलता के बल पर, जो उसमें कूट-कूट कर भरी थी, स्वास्थ्य ठीक न रहने पर भी, इस कार्य को ऐसे अनोखे ढंग से पूरा किया कि बाद के अधिक परिष्कृत साधनों और सर्वेक्षण विषय के प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक उपचित ज्ञान के द्वारा भी, मेरे विचार से, उसमें सुधार की कोई गुञ्जाइश नहीं दिखाई दी ।" राजपूताना के भूगोल के बारे में तत्कालीन अल्प ज्ञान का यही प्रमाण पर्याप्त है कि दोनों राजधानियों, उदयपुर और चित्तौड़ की स्थिति अच्छे से अच्छे मानचित्रों में भी बिलकुल विपरीत दिखाई गई है; चित्तौड़ को उदयपुर से पूर्व उ० पू० के बजाय दक्षिण-पूर्व में दिखाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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