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प्रकरण २०
बोरावाला (Beerwalla-बेरावल?)-प्रारमरा (Aramara), जूनी द्वारका; गोरेजा (गुरेजा ?); यवनों को मजारें; समुद्री डाकुओं के पालिए (स्मारक); बेट अथवा शंखो. द्वार; कृष्ण-कथा; बेट के शङ्ख; राजपूतों के रणवाद्य शंख; समुद्री लुटेरों का दुर्ग; हिन्दू अपोलो (विष्णु) के मन्दिर; राजपूत कवयित्री मीरा बाई; समुद्री राजाओं के ऐतिहासिक लेख; समुद्री वस्त्रों को सचाई ; नाविक धावों की सीमा ।
दिसम्बर ३०वीं व ३१वीं-प्रारमरा और बेट; अट्ठारह मील तक हमने खाड़ी के किनारे-किनारे एक सुन्दर सड़क पर यात्रा को जो परकोटा वाले शहर बेरावल और कच्छगढ़ के छोटे से किले में होकर निकलती है। प्रारमरा का प्राचीन और आकर्षक कस्बा समुद्र द्वारा बेट से पृथक हो गया है परन्तु, यह भूमि बिलकुल बेकार पड़ी थी जिसमें आज प्रातःकाल प्राकृतिक वनस्पति के रूप में केवल थूवर के ही दर्शन हो सके । कुछ भैंसों के झुण्ड, जिनको रेबारी चरा रहे थे, झाड़ियों में मुंह मार रहे थे, जो उनका मोटापा बनाए रखने के लिए पर्याप्त थीं-बस, यही जीवित प्राणियों के चिह्न हम वहाँ पर देख पाए। सदियों पुरानी समुद्री लूटपाट की आदत ने उनकी भूमि में बंजड़ होने का अवगुण ला दिया था; फिर भी, हमें परिश्रमी लोहरा भाटी मिले, जिनसे किसी भी ऐसे स्थान पर भेंट होना स्वाभाविक है, जहाँ धन पैदा करने की सम्भावना हो । ये लोग खारवा नाविकों और बह-संख्यक जाति के समुद्री लुटेरों वाघेरों अथवा मकवाणों में खूब घुल-मिल गए हैं । प्रारमरा का पटेल (Patel) अब भी अपने शुद्ध राठोड़ रक्त का अभिमान करता है और, यदि यह सच है तो, उसे अपने वंश का गर्व होना भी चाहिए। आसपास के कतिपय स्थलों के आधार पर यह ठीक जान पड़ता है कि प्रारमरा ही मूल अथवा प्राचीन द्वारका है। इसकी अपनी प्राकृति और आसपास के भग्न देवालय इस अनुमान की प्रबल साक्षी दे रहे हैं। बड़े मन्दिर की भांति यहाँ भी यात्रियों के शरीर पर कृष्ण की छाप लगाई जाती है, परन्तु यहाँ ब्राह्मण के स्थान पर चारण यह छाप भक्तों के देह पर अंकित करता है; भेंट के ग्यारह रुपये देने पड़ते हैं; त्यागी और वैरागी भी इससे मुक्त नहीं हैं।
प्रारमरा के आसपास और भी बहुत सी आकर्षण की वस्तुएं हैं, जिनमें कुछ मन्दिर भी हैं, परन्तु उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जिस पर मुसलमानों के
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