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________________ ४३६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा परन्तु, सामला रणछोड़ की प्रतिमा को पहले ही बेट में ले गया जहां वह अब तक मौजूद है। सामला मानिक के वंशजों का संवत् १८७६ (१८२० ई.) तक अोखा की भूमि पर अधिकार बना रहा और वे अपनी समुद्री प्रवृसियों को चलाते रहे, परन्तु उसी समय मल्लू मानिक (Mulloo Manik) के अत्याचारों ने अंग्रेजों को बदला लेने के लिए सन्नद्ध कर दिया। तो यह है उस कथा का सारांश जिससे हिन्दुओं के 'जगत्कुंट' में कृष्ण की स्थापना, उसके वंशजों का यवनों अथवा ग्रीकों द्वारा निष्कासन, मोहम्मद (बिन कासिम ?) का आक्रमण और अन्त में मेरे मित्र और स्कूल के साथी ऑनरेबल कर्नल लिंकन स्टैनहोप (Hon. Colonel Lincoln Stanhope) की अध्यक्षता में सेना द्वारा संगमराय के समुद्री लुटेरों के सरदार मल्लू मानिक के निधन के साथ-साथ उनके समूलोन्मूलन तक का सम्बन्ध है । असुरों और यवनों बेलम राजाओं, जिनका, मोहम्मद या महमूद ने सफाया कर दिया और अंत में चावड़ों और राठौड़ों की मन्द प्राचीन कथानों पर आधार खड़ा करना समय को बिगाड़ना मात्र है; परन्तु, अन्तिम तीन घटनाएं ऐतिहासिक तथ्यों से सम्पुष्ट हैं और एक के बाद एक तिथिक्रम से सम्बद्ध हैं । बेलम (जाति) के विषय में हमें पालीताना के विध्वंस से सम्बद्ध गाथाओं पर आधारित सूचना मिल चुकी है और हम यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि जिस समय यवनों अथवा ग्रीकों ने अपोलोडोटस और मिनान्डर की अध्यक्षता में इन 'सुरोई' क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी, वह समय भी इन गाथाओं के अनुसार कोई बहुत लम्बा-चौड़ा नहीं है । उनके पूर्वज दनुज (danoos) अथवा असुर असीरियन होंगे-इस बात से इन सूर्य-पूजकों के प्रायद्वीप के नाम के अतिरिक्त यहां के असाधारण शिलालेखों का भी विवरण विदित हो जायगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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