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प्रकरण - १९; रईब-सईब
[ ४३५ स्वयं वज्रनाभ भी अन्त समय में उत्तर के पर्वतों में भद्री (Bhadri) (बदरिकाश्रम ?) चला गया था और उसके वंशज उस प्रदेश के निवासियों में (जो दानू [दानव] कहलाते हैं) अन्तर्जातीय विवाह करके यहाँ जगत्कूट पर लौट आए तथा उन्होंने शंखोद्वार पर अधिकार कर लिया। वहां उन्होंने कलोर-कोट (Kulore Kote) खड़ा कर लिया, जहाँ वे एक हजार वर्षों तक राज्य करते रहे । इसो अवसर पर रईब और सईब (Raib and Saib) नाम के दो यवन प्रकट हुए, जिन्होंने इन सब को मार डाला और एक हजार पाँच सौ वर्षों तक यहाँ अपना अधिकार उस समय तक बनाए रखा जब मोहम्मद ●करा Mohomed Dhoonkra) जिसके पास विक्रमादित्य की चमत्कारिक अंगूठी थी, दिल्ली से आया; गोर और गजनी पर तो उसने पहले ही अधिकार कर लिया था। मोहम्मद ने कलोर-कोट और प्रोखा पर अधिकार कर लिया तथा बेलम (Belem)' जाति के रईब-सईब के वंशजों को मार कर समाप्त कर दिया । फिर पूर्व की ओर से कनकसेन चावड़ा पाया और उसके वंशज बहुत सो पीढियों तक राज्य करते रहे। इसके अनन्तर मारवाड़ से उम्मेदसिंह राठौड़ पाया जिसने चावड़ों का वध करके 'कूट' पर कब्जा कर लिया तभी से यह वाडेल (Wadail) या बाधेल (Badhail) कहलाने लगा क्योंकि यहाँ पर 'वध' किया गया था । बेट अथवा द्वीप में राजधानी बनी रही और इन राठौड़ों के वंशज यहाँ के पूर्व निवासियों में अन्तर्जातीय विवाहादि करके बाधेर (Wagairs) कहलाने लगे तथा साहसिक समुद्री लूटपाट के लिए प्रसिद्ध हुए। सामलामानिक वागेर के समय में औरंगजेब मन्दिरों को तोड़ता-फोड़ता इधर पाया और इसी अवसर पर द्वारका का शिखर भी उतार कर फेंक दिया गया;
१ परम्परागत कपापों में कहा जाता है कि बेलम जाति और इसके मुखिया गोरी बेलम ने
ही पालीताना का विनाश किया। • मोखामण्डल के इतिहास में वर्णित उत्तरवृत्त को राठोड़ों के इतिहास से सम्पुष्टि होती है।
राठोड़ों के इतिहास में लिखा है कि सीहाजी ने मारवाड़ में अपना राज्य स्थापित किया । उनके तीन पुत्र थे, प्रास्तानजी, सोनिंगजी और उज्जो (उदजी) । प्रास्तानजी तो मारवाड़ के राजा हुए और सोनिंगजी व उदजी गुजरात की तरफ चले गए । वहाँ का राजा भीमदेव (द्वितीय) उनका मामा था। उसने कड़ी परगने में सामेतरा ग्राम अपने भानजों को जागीर में दिया। उदजी का विवाह द्वारका के पास चावडों के एक ठिकाने में हुआ था। कुछ समय बाद इस उदजी ने वहाँ के भोजराज चावड़ा को मारकर द्वारका पर अधिकार कर लिया । इसी उदजी को लेखक ने उम्मेदसिंह लिखा है। इस प्रसंग में देखेंबॉम्बे गजेटियर, पृ० ५६१ ।
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