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________________ ४३४] पश्चिमी भारत की यात्रा में मण्डप के दक्षिण-पश्चिमी कोने में विराजमान है । बलदेव को दानवों से युद्ध करके पाताल से ऊपर प्राता हुआ बताया गया है । संगमनारायण के मन्दिर में एक वृद्ध पुजारी बैरागी (Byragi) कहलाता था; कहते हैं, वह उस समय अपनी प्रायु के सौवें वर्ष में चल रहा था। उसने जीवन में खूब यात्राएं की थीं, विशेषतः वैष्णव-तीर्थों की भारत में और बाहर भी; परन्तु, उससे कुछ भी जानकारी प्राप्त करना मेरे लिए कठिन था। समुद्री डाकुओं के दो जहाजों के तल भी कम आश्चर्य-कारक और मनोरञ्जक नहीं थे, जो खींच कर तट से ऊपर सूखे में संगमराय के मन्दिर के पास ही डाले हुए थे। इसी देवता के झण्डे के नीचे और संरक्षण में वे डाकू इन समुद्रों में खोज किया करते थे। __ मेरी शिलालेखों की खोज यहाँ निष्फल गई क्योंकि जो दो लेख मुझे मिले वे जानबूझ कर इस प्रकार विकृत किये गए थे कि कुछ भी पढ़ने में नहीं आ सकता था; और यद्यपि सभी प्रान्तों से समय-समय पर पाए हुए भक्तों और यात्रियों ने अपने नाम लिख-लिख कर दीवारों को रंग दिया था, परन्तु इन साधारण से साधारण अभिलेखों (Records) में भी मुझे कोई ऐसी बात नहीं मिली कि जिसका मैं अपने संस्मरणों में उल्लेख कर सकू। .. 'चोरों और एकता' के देवता के मन्दिर के पुजारी अपनी वंश-परम्परा के विषय में भी अत्यन्त अनभिज्ञ हैं और 'द्वारका-माहात्म्य' एक नीरस शास्त्रीय गद्य ग्रन्थ' है जिसमें असत्य एवं प्रशुद्ध घटनाओं के अनावश्यक समावेश का भी कोई विचार नहीं किया गया है जैसा कि प्रायः ऐसे ग्रन्थों में होता ही है । ये पण्डे यात्रियों की भुजाओं पर देवता की छाप लगाने में बड़े पक्के हैं और इनका प्रकार प्रायः वही है जो हमारे नाविक प्रयोग में लाते हैं। यह क्रिया 'संगम' पर सम्पन्न होती है। पहले सिर के बाल मुंडवा कर जल के देवता [वरुण] को समर्पण कर दिए जाते हैं और नकद भेंट चढ़ा दी जाती है, तब वे इस धार्मिक चिह्न को ग्रहण करके स्वदेश लौट सकते हैं। इन लोगों का कहना है कि यह मन्दिर, त्रिविक्रम-बुद्ध के प्राचीन मन्दिर पर, पोखामण्डल के राजा वज्रनाभ ने बनवाया था जो कृष्ण का पोता था, और जिसका वंश, महान् अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध (महाभारत) के बाद यादवों के सिन्धु के पश्चिम में यत्र-तत्र बिखर जाने तक एक शताब्दी-पर्यन्त चलता रहा था। । 'द्वारका-माहात्म्य' स्कन्दपुराणान्तर्गत प्रह्लादसंहिता कहलाता है-अतः प्रवाहयुक्त संस्कृतपद्य में इसकी सरस रचना हुई है। जान पड़ता है लेखक को इसी का कोई गद्यानुवाद मिला होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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