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________________ प्रकरण - १६; रणछोड़ का मन्दिर ; बुद्ध त्रिविचम [ ४३३ इस मन्दिर की नींव अयनान्तकाल में रखी गई होगी क्यों कि इसकी प्रगवार ख-मध्य रेखा से दश अंश भिन्न है और क्योंकि ऐसे विषयों में शिल्पी को पण्डितों के मतानुसार कार्य करना पड़ता है इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि गुरुगूचा' (Goor-goocha) ब्राह्मणों को, जो उस समय के मुख्य प्रबन्धक थे, और जो उस समय के सूर्योदय-बिन्दु को ही सही पूर्व-बिन्दु मानते थे, 'सूर्य-सिद्धान्त' का ज्ञान नहीं था। अत: इसकी चौड़ाई उत्तर-पश्चिम (N.N.W.) से दक्षिण-पूर्व (S.S.W.) में है और नियमों के प्रतिकूल इसका पिछवाड़ा उदय होते हुए सूर्य की ओर तथा अगवार पश्चिम में है। यहाँ कृष्ण का पूजन 'रणछोड़' के रूप में होता है। यह वह रूप है जब मगध के बौद्ध राजा ने उनको पितृदेश शौरसेन से भगा दिया था। एक स्तम्भाधारित ढको हुई सुरंग कृष्ण के मन्दिर को उनकी माता देवकी के छोटे-से मन्दिर से जोड़ती है; और विशाल चौक में कुछ और भी छोटे-छोटे मन्दिर हैं, जिनमें से एक, दक्षिण-पूर्व के कोने वाले में बुद्ध-त्रिविक्रम की मूर्ति स्थापित है अथवा जिनको प्रायः त्रीकमराय (TricamRae) या त्रिमनाथ (Trimnath) के नाम से भी अभिहित करते हैं। यह मन्दिर सदैव यात्रियों से भरा रहता है। इसके सामने ही अथवा मुख्य-मन्दिर के दक्षिण-पश्चिमी कोने में कृष्ण के दूसरे रूप मधुराय' का छोटा मन्दिर है और इन दोनों के बीच में एक मार्ग है, जो सोपान-सरणि द्वारा गोमती तक जाता है । यह एक छोटी सी नदी है, जिसका मुहाना समुद्र के समान ही विशेष पवित्र माना जाता है यद्यपि इसको पार करते समय पैर का ऊपरी भाग भी गोला नहीं होता । बड़े मन्दिर से 'संगम' पर बने हुए संगमनारायण के मन्दिर तक गोमती के किनारे-किनारे उन यात्रियों की समाधियाँ बनी हुई हैं जिन्हें इस 'देव-द्वार' में जोवन-विसर्जन करने का सौभाग्य प्राप्त हा है। इनमें पाँच पाण्डवों में से चार भाइयों की समाधियाँ भी हैं, जो इस क्रमागत कथा का समर्थन करती हैं कि पाचवाँ भाई हिमालय में जाकर अदृश्य हो गया था; कहते हैं कि वह वहाँ पर बरफ में गल गया और उसके साथ भारतीय हरक्यूलीज़ बलदेव भी थे, जिनकी प्रतिमा कुछ सीढियां नीचे उतर कर भोयरे • ये 'गुलेचा' अथवा 'गुरेचा' ब्राह्मण कहलाते हैं । २ 'मधु' अर्थात् 'मादक' कृष्ण का साहित्यिक नाम है, जो सम्भवतः 'माधव' से और 'मधु' (मक्खी ) से सम्बद्ध है-शायद यह शब्द हमारे 'Mead' से बना हो । वास्तव में, श्रीकृष्ण का 'मधुराय' नाम मथुरा के स्वामी होने के कारण पड़ा है। मथुरा को प्रायः ‘मधुरा' अथवा मधुपुरी कहते हैं । Mead शब्द का प्राचीन अंग्रेजी में Meodu रूप है, जिसका अर्थ शहद और पानी मिला हुआ सुगंधित पेय होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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