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प्रकरण - १६; द्वारका का मन्दिर
[ ४३१ बैरोमोटर ३००४,-थर्मामीटर प्रातः ६ बजे ६२°; दोपहर में ८५°-- सूर्यास्त के समय ७६° ।
कृष्ण के मन्दिरों में सब से अधिक प्रसिद्ध द्वारका का मन्दिर समुद्र-तट से कुछ ऊंचाई पर बना हुआ है और एक परकोटे से घिरा है, जो शहर के भी चारों ओर घूम गया है, परन्तु ये दोनों एक ऊंची दीवार से पृथक् कर दिए गए हैं। मन्दिर को अच्छी तरह देख सकने के लिए इसके अन्दर होकर निकलना पड़ता है । इसकी शिल्पकला वही है जिसे हम [शिखरबन्ध] देवालय को संज्ञा दिया करते हैं । इसे तीन भागों में बना कहा जा सकता है-मण्डप या सभा भवन, देवखण अथवा निज-मन्दिर, जिसको गर्भगृह (?) (Gabarra) भी कहते हैं और शिखर ।
पहले, मण्डप की बात कहें; यह प्रायः चौकोर है और भीतर से इक्कीस फीट है तथा इसकी ऊंचाई पाँच स्पष्ट श्रेणियों (मंज़िलों) में विभक्त है। प्रत्येक खण्ड में स्तम्भ-समूह है; सब से नीचे के खण्ड की ऊंचाई बीस फीट है और अन्त तक वही सम-चौकोण प्राकृति रहती चली गई है, जिसमें आड़े शीर्षपट्ट लगाए गए हैं, जो उत्तरोत्तर गुम्बज के लिए आधार बन जाते है; सब से ऊपर की चोटी धरातल से पचहत्तर फीट ऊँची है। प्रत्येक वर्गचतुष्कोण के मुख-भाग पर चार-चार भारी खम्भे खड़े किए गए हैं जो इस महान् भार की नींव का काम करते हैं । परन्तु, इन्हें भार-वहन के लिए अपर्याप्त समझ कर प्रत्येक स्तम्भयुग्म के बीच-बीच में कुछ अतिरिक्त खम्भे लगा दिए गए हैं जिससे समरूपता का बलिदान हो गया है। लगभग १० फीट चौड़ाई को एक खम्भेदार 'भमती' या फिरनी सब से नीचे की मंज़िल में घूम गई है, जिससे उत्तर, दक्षिण और पश्चिम की ओर के भाग खम्भों के सहारे और भी आगे बढ़ गए हैं। प्रत्येक खण्ड में एक भीतरी रविश भी है, जिसके सिरे पर तीन-तीन फीट ऊंची दीवार बनी हुई है कि जिससे कोई असावधान मनुष्य नीचे न गिर जाय । इन छोटी-छोटी दीवारों पर पृथक् पृथक् विभक्त भागों में कुराई का बढ़िया काम हो रहा था, परन्तु इसलाम की टांको ने भी अपना काम किया और प्रत्येक उत्कीर्ण मूर्ति को भ्रष्ट कर दिया गया, यहाँ तक कि अब मूल प्रायोजना का पता लगाने योग्य भी पर्याप्त चिह्न अवशिष्ट नहीं हैं; परन्तु, भ्रष्ट करने की यह क्रिया भी बहुत सोच-समझ कर की गई है कि जिससे मूल इमारत को कोई क्षति नहीं पहुँची है।।
मन्दिर का अधस्तम अथवा वर्गाकार भाग पूर्वकाल में गर्भगृह या निजमन्दिर है, जिसमें कृष्ण-भक्तिकाल से पहले 'बुद्धत्रिविक्रम' की पूजा होती थी और स्वयं कृष्ण भी बुद्ध-पूजन करते थे, जिसका एक लघु मन्दिर अब भी अन्तस्तम
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