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________________ ४३. ] पश्चिमी भारत की यात्रा इनका जवाब नहीं है। फिर भी, ये गांव बहुत मामूली हैं; लगभग तीस-तीस झोंपड़ियां एक-एक में हैं और इनमें पारिवारिक सुख की अपेक्षा व्यक्तिगत सुख की भावना अधिक है । मीनानी (Meannee) हमारे बाईं ओर चार कोस पर थी, जहां से हमने कुछ बढ़िया मछलियां प्राप्त की थीं। मुक्तासर (Mooktasirr) - दिसस्बर २६ वीं-आठ कोस, पूरे अट्ठारह मील । परन्तु, दो ही ढानियां मिलीं जो एक दूसरे से दस मील की दूरी पर थीं अर्थात् देवला से दो मोल पर सतोपुर, जिसमें अहीरों के पचीस घर थे और बोगांत (Bogant) में लगभग पचास घरों की बस्ती थी। इस पहाड़ी इलाके में बेजोड़ चरागाह हैं, जिनमें होकर हम दिन भर चलते रहे और बढ़िया-बढ़िया जानवरों के झुण्ड पुष्कल 'दूर्वा' चरते हुए हमारे सामने आये । मुक्तासर को 'सौन्दर्य की झोल' कहते हैं। यहां पर जंगली जलमुर्गाबियों की भरमार है और इसके पेटे में सूर्यकान्त मणि की किस्म का वह पीला रत्न पाया जाता है जो इधर के मन्दिरों में सजावट के लिए प्रयुक्त होता है। द्वारका - दिसम्बर २७ वीं-दस कोस । 'प्रानन्द की झोल' से 'द्वार के देवता" तक बोस मील का मार्ग बिलकुल ऊजड़ और ऊसर है। यहाँ समुद्र के किनारे पर मादड़ी [?] (Maddi) नामक एक गाँव है अथवा कभी था ! परन्तु, कुछ वर्षों पूर्व समुद्री डाकूओं के आक्रमण के बाद वह ऊजड़ पड़ा है। इस ऊजड़ गांव के पश्चिम में कोई चार सौ गज की दूरी पर खारी नदी है, जिसका मुहाना बालू की दीवार से अवरुद्ध हो रहा है; यदि इसको हटा दिया जाय तो यह 'जगत की कंट' फिर उसी प्रकार द्वीपाकार हो जाय जैसे कि कृष्ण के समय में थी। हम समुद्र के किनारे-किनारे चले, जिसकी लहरें रह-रह कर बालू अथवा कठिन कंकरीट की चट्टानों से टकराती थीं-यही इस द्वीप की किस्म-जमीन है जिसमें बालू और कोरी चट्टानों पर समान रूप से फैलने वाली थूवर के अतिरिक्त कोई चीज पैदा नहीं होती। कोई छः मील इधर से ही द्वारका के मन्दिर का शिखर दिखाई देने लगा और कोई एक मील की दूरी पर तो हमें दूसरी खाड़ी (Khary) में उतरना पड़ा जिसका पानी [घोड़े की] जीन तक आ गया था। परकोटे से घिरे हुए नगर में से गुज़रते समय और हिन्दुओं के 'जगत्कूट' पर स्थापित हमारे डेरे पर जाते हुए हमने पवित्र मन्दिर पर दृष्टिपात किया। 'द्वारकानाथ । । दक्षिण पूर्व में मादड़ी की दूरी १३ मील है। मैंने गुमली पहाड़ी के पूर्व की माप ली। २०७२° पू. और इस प्रकार यह माप (समुद्री) तट से तट को मिलाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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