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________________ प्रकरण - १६; त्रागा; मुत्तासर; देवला बालनाथ महादेव भी भाग ले लेते हैं, परन्तु ये सब विनाश और पुनरुत्पत्ति के प्रतीक हैं। नगड़ी (Nugdeah) दिसम्बर २४ वीं; सात कोस या चौदह मील । निर्जन जंगल में होकर एक नीरस मंजिल ; तीन या चार झोंपड़ियां हमको मिली जिनमें अहीर बसे हुए थे। उन्होंने बबूल और जंगली घास के जंगल में कहींकहीं कुछ खेत भी जोत रखे थे, जो चारों ओर दुष्प्रवेश्य थूवरों से सुरक्षित थे। इन में से एक राजरियो (Rajirio) नामक गांव कुछ आकर्षण का विषय था क्योंकि यह एक ऐसे चारण का ग्राम था जिसने महमूद के आक्रमण के समय त्रागा' (Traga) अथवा आत्मघात कर लिया था । बेचारा चारण अत्याचारी से केवल इसी प्रकार बदला ले सका। इन गीत-पुत्रों चारणों के पालिये अथवा स्मृति-पट्ट इस परम्परागत कथा की सम्पुष्टि करते हैं और उनके वंशजों के लिए अब भी तीर्थ-स्थान बने हुए हैं । आज मेरे चम-चक्षों ने गौरवगिरि गिरनार के अन्तिम बार दर्शन किए। देवला-दिसम्बर २५ वीं; छः कोस । करीब आधे रास्ते पर हमने लानी (Lanni) नदिया को पार किया और प्रोकपात (Okapat) को भी, जो ओखामण्डल (Okamundala) को पूर्वी सीमा पर आसिया-भादरा (Asiabhadra) ग्राम के पास है। उत्तर में होलूर (Hollur हालार ?) है । यहां की पूरी आबादी अहीरों को है, परन्तु कहते हैं कि इस जमीन पर उनके मालिकाना अधिकार नहीं हैं। वह सम्पूर्ण स्वत्त्व राजपूतों को प्राप्त है, जो इस क्षेत्र में यत्रतत्र बहत थोड़ी संख्या में बिखरे हुए हैं । मैंने पहली बार अहीरों से उनकी उत्पत्ति के विषय में सुना; वे अपने को यदुवंश का बताते हैं और कहते हैं कि यमुना-किनारे सौरसेन गोकुल-भूमि को छोड़ कर वे गोपाल-राजा कन्हैया के साथ संघ के रूप में यहां चले आए थे। कुछ भी हो, इनका कथन पौराणिक कथाओं पर आधारित है। इनका भ्रमणशील होने का गुण तो निर्विवाद सिद्ध है ही। सब मिला कर व्यक्तिगत गुणों की दृष्टि से इस प्रायद्वीप में अहीरों से बढ़ कर कोई जाति नहीं है, और खेती की सामग्री जैसे हल, गाड़ी और पशु आदि में तो भारत भर में ' जब आततायी इतना प्रबल हो कि पीड़ित अपनी शक्ति से किसी प्रकार उसका सामना नहीं कर सकता है तो वह अपने इष्ट देवता के सामने बैठ कर हठ ठानता है और शरीर को विविध प्रकार की यातनाएं देता है । कभी-कभी यह प्रक्रिया मरणान्त चलती है और इस प्रकार के शरीर-त्याग को 'त्रागा' कहते हैं। जौहर और त्रागा राजस्थान एवं गुजरात के विशेष आत्मबलिदान के प्रकार रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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