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________________ प्रकरण - १९; हिन्दू संघर-क्रम [ ४२७ भावना से युक्त इस अस्वीकृति से जेठवा राजा को बड़ा खेद हुआ; तब, उसके वंश-भाट ने बरड़ा पहाड़ी पर स्थित हर्षद-माता के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और वहां इतनी कठिन तपस्या एवं बलिदान सम्पन्न किए कि उसकी कुलदेवी ने प्रत्यक्ष सामने आकर उसे 'जेठवों की प्राचीन वंशावली, का ज्ञान कराया । इस सूचना के साथ वह चित्तौड़ गया और वहां के राजा का मन मनाने में सफल हुआ । इस विचित्र कथा के प्राधार पर हम पूंछेडिया रावों के 'एक सौ पैंतालीस मुकुटधारी राजाओं' का हिसाब नहीं बैठा सकते और समसामयिक तिथिक्रमानुसार घटनाओं की कसौटी के आगे तो वे सब हवा में उड़ते नज़र आते हैं। फिर, हर्षद माता कोई जादूगरनी तो थी नहीं, न छल-वश होकर के अपनी पुत्री का पाणि-समर्पण किसी अर्द्ध-देवता को कर देने से 'हिन्दूपति सूर्य' का ही सम्मान बढ़ जाता था। परन्तु, इन छिछले उपाख्यानों से भी हम कुछ सच्चे ऐतिहासिक तथ्यों का पता चला सकते हैं, जो सब भारत में इसलाम के आगमन से कुछ ही शताब्दी पूर्व के उस अन्धकारपूर्ण, परन्तु रोचक, समय से सम्बद्ध हैं जब कि नईनई जातियां यहां निरन्तर आने लगी थी और वे प्राचीन राजपूतों में सम्मिलित हो रही थीं। जिन लोगों ने हिन्दू संवत्-क्रम (Chronology) पर विचार किया है उन्हें याद होगा कि बहुसन्दर्भित वलभी के शिलालेखों में कम-से-कम चार विभिन्न संवतों का उल्लेख मिलता है जिनमें से एक, जो सब से बाद का है, 'सी हो है' (Seehoh) [सिंह ?] नाम से अभिहित है । इस प्रकार वलभो संवत् ६४५= विक्रम संवत् १३२०-सीहोह संवत् १५१ हुआ, जिसको यदि १३२० में से घटा दें तो संवत् ११६६ अथवा १११३ ई० बच जाते हैं । उस समय यह चालू हुआ होगा। तब सिद्धराज प्रणहिलवाड़ा का सर्वसत्ता सम्पन्न राजा था और इन क्षेत्रों पर उसका सार्वभौम अधिकार था। क्या संभव हो सकता है कि बल्हरों में सब से बड़े इस राजा ने अपने अट्ठारह परगनों के साम्राज्य के निकटतम सौराष्ट्र के कोने में इस नये संवत् को चालू करने की आज्ञा दो हो ? किसी भी दशा में, यह गूमली के सीहोह [सिंह ?] से ही सम्बद्ध हो सकता है । परन्तु, गमली तो नष्ट हो चुका था और वहाँ का पापी राजा अपने कर्मों का फल भोगने चला गया था। चारण ने सालामन के देश-निकाले की दुःखपूर्ण गाथा का समर्थन किया है-'सिन्धु सुम्मा वंश के जाम ऊनड़ ने उसका संरक्षण किया जिसके पुत्र बमनिमा (Bumnea) ने सेना लेकर उसको पुनः गद्दी पर बैठाने के लिए आक्रमण किया, परन्तु सालामन ने अपनी जन्मभूमि को, जहां उसके पिता और ब्राह्मणों का रक्त बहा था तथा जो सती के शाप से अपावन हो गई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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