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________________ ४२६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा इस प्रकार हमें जेठवों के इतिहास की दो ऐसी घटनाओं का पता चलता है, जो सुदृढ़ आधारों से सम्पुष्ट हैं-पहली, संवत् ७४६ में गूमलो की स्थापना और दूसरी, संवत् ११०६ में इसका विनाश; प्रथम घटना शीलकुँवर से सम्बद्ध है, जो दिल्ली के अनंगपाल का समकालीन था (जिसका समय हमने अन्यत्र तिथिक्रम-सारणी एवं अन्य राज्यों के इतिहास की समसामयिक घटनाओं के आधार पर निश्चित किया है ) और गुमली के विनाश की सम्पुष्टि पालियों अथवा स्मारक पत्थरों से हो जाती है । वंशावली को प्रश्रय देते हुए (इस घटना के लिए] कुछ वर्ष आगे संवत् १११६ का समय भी मान्य किया जा सकता है। इन दोनों तिथियों के बीच में अर्थात् तीन सौ साठ वर्षों के समय में हम बीस राजाओं का गद्दी पर बैठना स्वीकार कर सकते हैं। इस बात की सुखद सम्पुष्टि करते हुए मेरे चारण मित्र ने बताया कि उसकी सूची में भी इतनी ही संख्या लिखी है और गमली के विनाश की दुर्घटना 'अब से सात सौ सत्तर वर्ष पूर्व' हुई थी। यह हिसाब पालियों की तिथि से भी बिलकुल सही बैठता है। इस बीच में एक ऐसा समय आता है जिस पर ध्यान देना प्रावश्यक है; वह है गुमली के विनाश से दस पीढ़ी पहले सिंहजी का समय । वंशावली से पता चलता है कि सिंहजी ने चित्तौड़ की राजकमारी से विवाह किया था। यदि अनुपातत: एक राजा का राज्यकाल तेवीस वर्ष माना जाय तो इस हिसाब से सिंहजी का समय ८२३ ई० पाता है, जो उस महान् घटना के बहुत ही निकट का सिद्ध होता है, जिसका उल्लेख मेवाड़ के इतिवृत्तों में हुआ है अर्थात् पहला इसलामी हमला जब कि समस्त राजपूती शौर्य चित्तौड़ की रक्षा के लिए एकत्रित हना था; और उन 'चौरासी राजाओं में, जिनके लिए किले की चारदीवारी में गद्दियां लगाई गई थीं, जेठवा राजा का विवरण मेवाड़ के भाट ने स्पष्ट रूप से दिया है । जेठवों के इतिवृत्तों में उन परिस्थितियों का भी वर्णन है जिनके कारण यह विवाह-सम्बन्ध सम्पन्न हुआ और हिन्दू मतानुसार इस 'पृथ्वी के छोर' का राजा चित्तोड़ के महाराणा के हितों की रक्षा के लिए स्वयं वहां पर गया। यह विवरण यद्यपि बहुत गम्भीर नहीं है, परन्तु इसका महत्त्व इस लिए बढ़ जाता है कि इससे यह पता चलता है कि जेठवों को उत्पत्ति की विचित्र कथा का आविष्कार प्राधुनिक या पिछले जमाने में नहीं हुआ है। चित्तौड़ का एक घुमक्कड़ गायक अपनी निरुद्देश्य यात्रा के प्रसंग में जेठवा राजा के दरबार में पहुंचा। राजा ने उसको खूब इनाम इकराम से लाद दिया और विवाह-प्रस्ताव का माध्यम बनाया। इस प्रस्ताव के उत्तर में चित्तौड़ के रावल ने तिरस्कारपूर्वक कहलाया 'मैं वानर पिता और मछली माता को सन्तान को अपनी पुत्री नहीं दूंगा।' तिरस्कार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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