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________________ प्रकरण - १६, गूमली का पतन [ ४२५ प्राचीन डाबी जाति के पाए गए। वंशावली और भाट की मौखिक कथा के अनुसार इस अशुभ घटना की तिथि संवत् ११०६ (१०५३ ई०) है, जो स्मारक के पालियों [चबूतरों में से किसी पर भी अंकित संवत् से तीन वर्ष पहले की है। असुरों (राजपूतों के भाटों ने सामान्यतया यह शब्द मुसलमानों के लिए प्रयुक्त किया है) के लिए स्पष्ट लिखा है कि उनके लम्बी-लम्बी दाढ़ियां थीं और वे लोग 'मन्दिर में कुरान पढ़ कर' वापस सिन्ध लौट गए। मैंने पाठकों का ध्यान कई बार चित्तौड़, गमली आदि जैसे नगरों की ओर आकर्षित किया है और वहाँ सती के 'तिलक' अथवा स्मारक के विषय में भी घोषणायें की हैं, जिन से 'यहूदी पैगम्बर' द्वारा मिस्र, ईडम (Edom)' और टायर (Tyre) को दिए हुए शापों में से किसी एक की याद आ जाती है, और उस अनिष्ट-सूचक आदेश का भी स्मरण हो पाता है जो इतना प्रभावशाली और बीभत्स होते हुए भी 'पवित्र लेख' (Holi Writ बाइबिल ?) में इतनी सरलता से उल्लिखित है 'जो देश ऊजड़ हैं-उन्हीं के बीच में इन्हें भी ऊजड़ होना ही चाहिए'; यह कथन (आदेश) गूमली के एकान्त ध्वंसावशेषों पर ऐसा लागू होता है मानो विनाश के फरिश्ते के पर ही [वास्तव में इनके वैभव को] समेट ले गए हों। इसमें वे सभी चिह्न पाए जाते हैं जो किसी भी अकस्मात् ऊजड़ हुए नगर में होते हैं। शपथ [शाप] की गम्भीरता एक-एक पत्थर तक व्याप्त दिखाई पड़ती है । सभी पुरावशेष यथावत् मौजूद हैं, जो धीरे-धीरे ध्वस्त और ऊजड़ हुए किसी निर्जन नगर में शायद ही पाए जाते हैं। सती के शाप को क्रियान्वित करने और गूमली के अवशेषों की रक्षा करने के लिए केवल दो चेतावनियां ही पर्याप्त सिद्ध हई। पहला तो मोरवाड़ा (Morewarra) का उदाहरण है, जो पूर्णतया जेठवों की राजधानी के अवशेषों से निर्मित हुआ था और भूकम्प की एक ऐसी दुर्घटना में धराशायी हो गया जैसी प्रायः इन क्षेत्रों में ईश्वरीय आदेश की अवहेलना के फलस्वरूप हुआ ही करती हैं । ऐसा ही भांवल में हुआ, जहाँ आसानी से प्राप्त हुई यहां की सामग्री से निर्मित कुछ घर एक साथ गिर गए और उनमें रहने वाले भी उन्हीं के नीचे दब गए। अत: इन अवशेषों को मनुष्य द्वारा नष्ट होने की कोई आशंका नहीं है और ये विचित्र पदार्थों के रूप में उस समय तक यथावत् विद्यमान रहेंगे जब तक कि भविष्य में कोई प्रकृति का झोंका 'कुवरों के इस प्राचीन नगर को भूमिसात् न कर दे । ' पैलेस्टाइन के दक्षिणी जिले का नगर, जो मृतसमुद्र (Dead Sea) और अकाबा की खाड़ी के बीच की पर्वत श्रेणी के पास है। यहां के निवासी ईसाउ (पृ० ४३ टि०) के सम्बन्धी बताए जाते हैं। यह नगर यह दी पादरियों द्वारा अभिशप्त था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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