________________
प्रकरण - १६; जेठवा-राजवंश
[४२१
यादवों, ढाँक अथवा प्रपट्टण के बल्हों, मूंगीपट्टण के गोहिलों, उमरकोट के सोढ़ों
और अन्त में चावड़ों से भी होते रहे हैं, जो इस प्रायद्वीप में यादवों से भी पहले निवास के विषय में झगड़ते रहे हैं। यही नहीं, इस (चावड़ा) जाति के बचेखुचे लोगों से मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि उनका और जेठवों का निकास एक हो स्थान से है; 'वे समुद्र पार सकोत्रा बेट अथवा लालसमुद्र में सकोत्रा द्वीप से आए और पहले अोखामण्डल में बस गए, फिर वहाँ से प्राचीपट्टण इत्यादि स्थानों पर चले गए।
शील के बाद चौथे राजा फूलकुँवर ने सूर्य का मन्दिर बनवाया, जो अब तक श्रीनगर में विद्यमान है; उसके उत्तराधिकारी भीम ने गूमली पर छिटकी हुई बरड़ा पहाड़ियों की चोटी पर किला बनवाया जो उसी के नाम पर भीमकोट कहलाता है । मेरे यात्रा-सहचर मिस्टर विलियम्स ने, जो ऊपर चढ़ गए थे, बताया कि यह बहुत लम्बा-चौड़ा किला था और गढ़े हुए पत्थरों से बना था, जो बिना सीमेण्ट के ही एक दूसरे से सटे हुए थे, यद्यपि ऐसे चिह्न मिलते हैं कि वे लोहे या इस्पात की सहायता से एक दूसरे से जोड़ दिए गए थे। वहीं पानी का एक टांका भी था। परन्तु, जेठवों का यह दृढ़ किला अब केवल जंगली जानवरों की प्रारामगाह बना हुआ है और मेरे मित्र के अनुसन्धानमूलक उत्साह ने एक वन्य वराह को उसकी माँद में से जगा भी दिया था।
वंशवृत्त में लिखा है कि आठवें राजा ने कर्ण बाघेला को परास्त कर दिया था, परन्तु अणहिलवाड़ा के इतिहास का ज्ञान होने पर इस विपरीत कथानक का असत्य सामने आ जाता है, क्योंकि सोलंकी वंश के इस सुप्रसिद्ध राजा पर विजय पाना तो दूर रहा प्रत्युत उसके शासनकाल में ही गूमली का वास्तविक विनाश सम्पन्न हुआ था।
दसवें राजा भाणजी द्वारा कच्छ पर आक्रमण कराया गया है और कहा गया है कि उन्होंने वहाँ को तत्कालीन राजधानी कन्थकोट (Canthi-Kote) और सिन्ध के सुप्रसिद्ध नगर बमनवाड़ा (Bumanwara)' पर अधिकार कर लिया था।
चौदहवें राजा राम के विषय में कहा गया है कि वह जूनागढ़ के राव चूड़चन्द यदु का समकालीन था, जिसका नाम गिरनार के लेख में पाया जाता है।
' शिववाद[स]पुर (Sheodadpoor) आज तक कोट ब्रह्मन (Kote-Burman) कहलाता
है और सम्भवत: यही मेरे शिलालेख और चन्द के काव्य का बमनवासो (Bumunwasso)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org