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प्रकरण - १६ जेठवा-राजवंश का उद्गम [११६ भी कम, तिथियों के साथ जुड़े हुए कुछ नामों से ही उनकी परम्परा बनी हुई थी। फिर भी, मैं एक-सौ-पैंतालीस राजाओं का गुणगान, गूमली की स्थापनो से विनाश तक का वर्णन, उन लोगों के अन्तर्जातीय विवाहों, उनकी स्त्रियों और जातियों के (विविध) नामों का विवरण अनुकरणीय धैर्य के साथ इस प्राशा से सुनता रहा कि वंशावली की इस लम्बी श्रृंखला से समसामयिकता के आधार पर सम्भवतः कोई तथ्य निकल सके जिसका कि 'वेल्स की ऐसी जातियों में भी पादर हो सके जिन के मूल का अनुसन्धान प्रभी नहीं हो पाया है।' यह पुस्तक मेरे द्वारा देखी हुई वस्तुओं में बहुत विचित्र प्रोर कलात्मक सिद्ध हुई। ____ मस्तिष्क की ऐसी विकृति का, जो इस प्रकार की असम्बद्ध बातों को लेखबद्ध करने में कारण बनती है, मैं एक ही उदारण यहाँ प्रस्तुत करूंगा। इस उदाहरण की पश्चिम के किसी भी कवि अथवा भाट द्वारा गढ़ी हुई बात से समानता की जा सकती है। जातियों की उत्पत्ति के प्रसंग में मुझे पहले भी ऐसी मनघड़त कहानियों का उल्लेख करना पड़ा है, जो उनके बर्बर-उद्गम को छुपाने के लिए आविष्कृत की गई हैं । इन लोगों का कहना है कि 'पूछेडिया' सरदारों का पूर्व-पुरुष लाल-समुद्र के प्रवेश-द्वार सकोत्रा (Socotra) स आया था (जो प्राचीन काल में व्यावसायिक वस्तुओं के लिए एकत्रित हुए ग्रीक, परव, मिस्री और हिन्दू व्यापारियों से बसा हुआ माना गया है)' जिसको उन्होंने 'शङ्खोद्धार' अथवा शंख का दरवाजा, ऐसा शास्त्रीय नाम दे रखा है। यह व्यक्ति राम का सेनापति वानर देवता हनुमान था, जो उसकी पत्नी सीता की पुनः प्राप्ति के लिए अपनी सेना लङ्का पर चढ़ा ले गया था। जेठवों का मातामह मकर (Macur), (मनु के अनुसार एक समुद्री जन्तु) के अतिरिक्त और कोई नहीं था जो या तो बड़ी मछली थी या घड़ियाल था। जब राम वीरतापूर्वक लंका-विजय करके लौटे तो मकरध्वज (मकरों के ध्वज) को उसकी माता ने सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर मानवीय राजाओं का वंश चलाने के लिए अव. तरित किया। परन्तु, जैसा कि प्रत्युत्पन्नमति गिबन (Gibbon) ने कहा है, [बालक को] भिन्नतासूचक चिह्न माता-पिता में से किसी एक ही का प्राप्त होता है, यहाँ माता का कोई निशान न रहा और पिता पर पड़े हुए जेठवा ने उसका एक शारीरिक लक्षण बढ़ी हुई रीढ़ की हड्डी के रूप में प्राप्त किया,
' ये जातियां Cinmbri कहलाती हैं। ये लोग रोमन-शक्ति के लिए भी दुर्दम्य प्रमाणित
हुए थे और इतिहासज्ञों के लिए इनका उद्गम अब तक भी अन्वेषण का विषय है। २ Edin. Review No. cxxiv.
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