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________________ ४१४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पश्चिमी दीवार बहुत टूटी-फूटी है - एक चौड़ी खाई के अवशेष भी यहाँ दृष्टिगत होते हैं । इस कस्बे में घुसते ही सब से पहले जिस चीज की ओर ध्यान जाता है वह है जेठों का मन्दिर, जो महलों के पास ही उस कोण पर बना हुआ है जहाँ से पहाड़ियों में पुनः प्रवेश किया जाता है । यह इमारत क्रॉस ( काँटे ) की प्रकृति की है, जो हिन्दुनों की पवित्र स्थापत्यकला में अनजानी नहीं है । इसका प्रवेशद्वार उगते हुए सूर्य के श्रभिमुख है । यह (मन्दिर) एक ऊँचे चबूतरे की पीठिका पर खड़ा है, जिसकी लम्बाई एक सौ तरेपन फीट चौड़ाई एक सौ बीस फीट और ऊँचाई बारह फीट है । यह तराशे हुए पत्थरों से बना हुआ है और इसकी भित्ति-सज्जा बहुत ही सुन्दर है । मन्दिर में तेवीस फीट व्यास वाला एक अष्टकोण मण्डप है जिसको ऊँचाई दो खण्ड है और उसके ऊपर एक गुम्बज है जो धरातल से लगभग पैंतीस फोट ऊँचा है । इस मन्दिर का स्थापत्य और मूर्ति - शिल्प दोनों ही असाधारण हैं और जो जो चीजें मैंने अब तक देखी हैं उन सबसे भिन्न हैं । इसके आधार में लगभग बारह फीट ऊँचाई के स्तम्भों की एक सरणी है जो अष्टकोणाकृति में प्रायोजित की गई है और ये स्तम्भ कोरणी का काम किये हुए भारपट्टों से सम्बद्ध कर दिए गए हैं । इसीके ऊपर दूसरी स्तम्भपंक्ति है (जिसमें सामने ही पत्थर की रविश और कटहरा है ), जिस पर कोरणी द्वारा उत्कीर्ण रास- मण्डल अथवा स्वर्गीय नृत्य-सम्बन्धी मूर्तियों से सुसज्जित गुम्बज टिकी हुई है, परन्तु इसका कुछ भाग टूट कर गिर गया है । पूर्व और पश्चिम की ओर आगे निकली हुई दो ड्यौढ़ियाँ हैं जो हमारे गिरजाघरों के मध्य भाग के समान हैं । इनकी ऊँचाई व चौड़ाई चौदह फोट तथा आठ फीट है; इनमें अनेक खम्भे व बोच की छत है, जिसके मध्य में बहुत बारीकी और सजावट से कोर कर एक कमल बनाया गया है । बड़ी गुम्बज के चारों ओर कुछ छोटी गुम्बजें भी हैं, जो भी इसी की तरह खम्भों पर टिकी हुई हैं । पश्चिम में 'देव खण' [ देवखण्ड ] अथवा निजमन्दिर है जो दस फीट वर्गाकार का एक छोटा सा कक्ष है; यह अब खाली पड़ा है और इसके ऊपर खड़े शिखर का बहुत-सा भाग तोड़ कर गिरा दिया गया है । यद्यपि भीतर से इसकी अधिकतम लम्बाई-चौड़ाई तरेसठ फीट और चौपन फीट ही है परन्तु मैंने बहुत थोड़ी ऐसी इमारतें देखी हैं, जो इसकी तरह प्रशंसा के दायरे में आती हों। जेठवों के इस मन्दिर की पौराणिक मूर्तियाँ बहुत ही आकर्षक हैं; विशेषतः खम्भों के शीर्ष भागों में, जिन पर मन्दिर का मुख्य भाग टिका हुआ है, असाधारण समायोजना को इतनी उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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