________________
प्रकरण - १६; गूमली; बरड़ा की पहाड़ियां । ४१३ पाती है। जंगली घास और कांटेदार थूवर से भरे विस्तृत मैदानों में खेतीबाड़ी तो जमीन के किसी-किसी टुकड़े ही में दिखाई देती है। हम मीइपुर (Meapoor) गांव में होकर निकले, जिसमें एक किले के अवशेष हैं; वह कुछ ही वर्षों पहले डाकूमों की जगह होने के कारण नष्ट कर दिया गया है। अब, इस गाँव में दीन दुखिया अहोरों के पचीस घरों की बस्ती है। भांवल नवानगर के जाम के अधिकार में है और यहाँ पर मोमन कारीगरों जुलाहों के लगभग पंद्रह सौ घर हैं । यह कस्बा बनवारी नदी के किनारे पर स्थित है, जिसका बहुत सा पानी नालियों द्वारा खेती-बाड़ी में प्रयुक्त होता है और बचा हा वितोद्रा (Vitodra) नामक विशाल नदी में जा मिलता है, जिसके तट पर इन्द्र देवता का एक मन्दिर खड़ा है ।
गूमली के अवशेष-इस प्रायद्वीप में एकदा विशिष्ट रही जेठवा जाति की प्राचीन राजधानी गूमली के खण्डहरों की खोज के लिए हम कुछ दिन भाँवल ठहरे। वहीं इस प्रान्त के पोलिटिकल एजेण्ट मेजर बानवेल (Major Barnewell) भी हमसे आ मिले।
गूमली बरड़ा (Burrira) की पहाड़ियों के उत्तरी मुखभाग पर स्थित है, जिसका नाम प्राचीन भारतीय भूगोल में पारियात्र (?) (Purvata l है और लो महर्षि भृगु के आश्रम के रूप में प्रसिद्ध है । यह प्राचीन नगरी भांवल से लगभग तीन मील की दूरी पर स्थित है और अपनी एकान्त स्थिति के कारण यात्री को आश्चर्य में डाल देती है, क्योंकि यहाँ के प्रसिद्ध मन्दिर का शिखर भी बहत नज़दीक पहुंचे बिना दूर से दिखाई नहीं पड़ता । ऐसा कह सकते हैं कि यह एक गर्त अथवा घाटी में दबा हुआ है, और दक्षिण तथा पूर्व में अपने आधार से लगभग छः सौ फीट ऊंची बरड़ा की पहाड़ियों से घिरा हसा है और शेष दिशाओं में अन्य छोटी पहाड़ियों में छुपा हुआ है। दर्शक के आश्चर्य में यह जान कर भी कोई कमी नहीं आती कि गमली में पिछली कई शताब्दियों से कोई नहीं रहता है । तीन ओर से चने और कंकरीट (जिसको कांकरा भी कहते हैं) से बना हुआ, बड़ी-बड़ी वर्गाकार छतरियों से युक्त सुदृढ़ परकोटा इसको उत्तर, पूर्व और पश्चिम में घेरे हुए है, जो दक्षिण में स्वाभाविक रूप से सुरक्षा करने वाली पहाड़ियों से जा मिलता है। परकोटे की ये दीवारें पहाड़ के ऊपर तक चली गई हैं, जहाँ पर [प्राचीन] किले के अवशेष अब जंगली जानवरों की गुफाएं बन गए हैं। प्रत्येक दीवार के बीच में सम्बद्ध दिशा के सामने एक द्वार बना हुआ है। पूर्वीय और उत्तरी दीवारें क्रमश: पांच सौ और पाठ सौ गज लम्बी और साबुत हैं-पूर्वीय परकोटे की भींत और मुडेरें तो बिलकुल पूरी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org