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________________ ४१२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा बदल लिया है, इस तथ्य का प्रमाण एक पुल से मिलता है, जो अब बहुत ऊंचा हो गया है और सूखा पड़ा है। पिछले अकाल द्वारा हुए विनाश का असर कस्बे और देहात दोनों हो पर पड़ा है, जिससे आबादी बहुत कम हो गई है। गांव बहत दरिद्र थे, जिनमें प्रत्येक में बीस से लमा कर सत्तर तक झोंपड़ियां थीं, और उनमें बसने वाली अत्यन्त उपयोगी जातियों के नाम अहीर या कुनबी थे जिनकी दशा बहुत ही दयनीय थी। तुरसी-दिसम्बर १६ वी; अठारह कोस । यात्रा प्रारम्भ करने के बाद कोई पाँच मील चल कर हम एक मुख्य स्थान पर पहुँचे जो इसरियो (Esarioh) कहलाता है। यहाँ अहीरों और कुनबियों की बस्ती है, जिनमें परिष्कृत खेती के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं । हमारे बाई ओर कण्डोरना (Kundornah)' का प्राचीन नगर था, जो जेठवा राजपूतों के आधिपत्य में था। देवला (Deolah) में एक गढ़ी उस नदी के किनारे खड़ी है, जो जूनागढ़ को जाम के राज्य से पृथक् करती है और तीसरी सीमा बाईं ओर कोई डेढ़ मील पर है, जहाँ खुलसना (Khulsuna) में जेठवा राना की हद है। अब तक चली आई कमजोर फसलें यहाँ पाकर और भी क्षीण हो गई हैं और किसान प्रायः उन्हीं जातियों के हैं, जिनके नाम ऊपर लिखे जा चुके हैं । तुरसी (Tursyc) बरड़ा की पहाड़ियों की पूर्वीय श्रेणी के पास है। भांवल (Bhanwul)-दिसम्बर २० वीं से २३ वीं तक । सात कोस । ज्यों ज्यों हम आगे बढ़ते हैं त्यों त्यों जमीन की हालत अधिक खराब नज़र , एक अत्यन्त बुद्धिमान् भाट के पास मैंने इतिहास और वंशपरम्परावृत्त का स्फुट संग्रह देखा था, जिसमें से सौराष्ट्र के प्राचीन नगरों के विषय में कुछ उद्धरण भी लिए थे। कुछेक इस प्रकार हैं- 'कण्डोरना या कण्डोला ही बहुत पहले वीसलनगरी था, बाद में शिलानगरी में बदल गया, फिर तिलापुर और थन-कण्डोल हुआ और अब कण्डोला हो गया।' भाट की पुस्तक में से जो नकल मैने ली है उसमें यही क्रम है, परन्तु मैं समझता है कि यदि जेठवा जाति के 'शोल कुंवर' के कारण इसका नाम 'शिला नगरी' पड़ा हो तो तिलापुर' इससे पहले का नाम रहा होगा। बहुत से वर्षों तक मैं (मेवाड़ के) राणानों के पूर्वजों की राजधानियों में से सौराष्ट्र में तिलापुर पट्टन की खोज करता रहा परन्तु सफल न हुमा; परन्तु, अब मैं अनुमान किए बिना नहीं रह सकता कि यह वही स्थान है। यह भी असम्भव नहीं है कि इसका नाम 'शिला नगरी' शिलादित्य के कारण पड़ा हो, जिस नाम के हो (राजा) बलभी के विध्वंस से पूर्व हो चुके हैं। प्रथम संवत् ४७७ में मौर अन्तिम सं० ५६ [?] में । शिलालेखों से यह प्रश्न हल हो सकता है। विलभी का अन्तिम राजा शिलादित्य सप्तम ७६६ ई. में हुआ था] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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