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________________ प्रकरण - १८; वृद्धा यात्रिणी; हाथी टूक [ ४०७ अपने एवं गोपाल देवता के जन्म स्थान से पैदल चल कर द्वारका और पीची (Pichee) तक गई थी, जहाँ श्रीकृष्ण की निर्वाण स्थली थी; अब वह वापस गोकुल जा रही थो । सन्तोष को प्रतिमा गढ़ने निमित्त वह वृद्धा यात्रिणी किसी शिल्पकार की टांकी के लिए एक बढ़िया नमूना या आदर्श हो सकती थी; उसे देख कर श्रद्धा और वात्सल्य के मिश्रित भावों के चित्र मेरी चेतना का स्पर्श करने लगे; उसके गांव गोकूल का नाम सुन कर भावों में और भी अधिक गम्भीरता पा गई थी और निश्चिन्तता एवं प्रसन्नता भरे कितने हो दिवसों तथा बहुत से पुराने मित्रों की स्मृतियाँ ताजा हो उठी थीं, जिनमें से अब केवल एक ही जीवित बचा है । दूसरे यात्रियों ने भी अपनी अपनी जन्म-भूमि के विषय में मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए; कोई गंगातीर्थ से आया था तो कोई जमना, कावेरी से और कोई 'काशीजी' या बनारस से । ज्योंही हम आगे बढ़े तो बहुत से यात्रियों ने 'गङ्गा की जय'- इस घोष को दोहरा कर उत्तर दिया। ___ मैं 'हाथो' नामक ट्रक पर ठहरा; धूप में यद्यपि बहुत तेज़ी थी और पाठ बज चुके थे, परन्तु गिरनार के गुहानिवासी पक्षी गरुड़ और गिद्ध अपनी अपनी गुफाओं से अभी बाहर नहीं निकले थे, जिनके झुण्ड के झुण्ड पर्वत के इस मुख पर मधुमक्खियों के छत्तों के समान लटके रहते हैं। सभी खोखले एक ही प्रकार के थे और मैं इसके विषय में यही कह सकता हूँ कि इनको किसी भी रूप में अद्वैतवादी जीव-रक्षकों ने काट-काट कर पक्षियों के रहने के लिए बनाए हैं, क्योंकि इनमें से बहुत से ऐसे स्थानों पर बने हैं जहाँ मौसम का प्रभाव यकायक नहीं पड़ता। कहीं-कहीं बड़े बड़े खोखलों के अन्दर कबूतर आदि लघु पक्षियों के रहने के लिए छोटे-छोटे मोखले भी बने हुए हैं। फिर, कई जगह धरती बड़े-बड़े काले सर्यों से इस तरह पटी हुई है कि चट्टान का एक कण भी दिखाई नहीं देता । मैं नहीं जानता कि गरुड़ अथवा उससे भी अवर पक्षी गिद्ध इस शिकार पर टूट पड़ते हैं या नहीं ? परन्तु, यदि वे अघोरी के साथ दावत नहीं मनाते हैं तो उन्हें अपने भोजन की तलाश में बाहर ही जाना पड़ता होगा। कौमा गिरनार पर निवास नहीं करता; इससे उसकी चतुराई ही प्रकट होती है कि वह बुद्धिमानी से मांसाहारो शव के साथ रहना पसन्द करता है और शाकाहारी भोजन जैन के लिए छोड़ देता है। ____ इस असम्बद्ध ऊँचो पहाड़ी पर विद्यमान एक चट्टान में मोटे-मोटे और स्पष्ट अक्षरों में राव राणिगदेव' का नाम दिखाई पड़ता है, जिसने संवत् १२१५ में यहाँ की यात्रा की थी।' इसमें जाति और देश का नाम तो नहीं लिखा है, परन्तु मैं निःसन्देह कह सकता हूं कि यह सौराष्ट्र के उपजिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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