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पश्चिमी भारत की यात्रा
बैठा रहा परन्तु संध्या ठंडक लिए हुए थी इसलिए अन्त में मैं उसी निर्जन रक्षाकक्ष में लौट श्राया जिसे छोड़ कर उधर चला गया था ।
मौसम में अब प्रचण्डता आ गई थी; हवा की तेजी प्राधी रात तक बढ़ती रही और मुझे मेरा बिस्तर, जो मैदानों के लिए काफी से अधिक था, यहाँ बहुत कम जान पड़ा । झञ्झा की आत्मा खिड़कियों और जालियों में होकर खंगार के द्वारहीन कक्षों में चीत्कार कर रही थी और यदि इसके साथ ठंड न होती तो इसका शब्द उस अवसर के लिए उपयुक्त लोरी [ शयन- गीत ] का काम करता । इसको कुछ कम करने के लिए मैंने यह तरकीब की कि जिस ओर से हवा आ रही थी उधर के खुले स्थानों को झाड़ियों और घास आदि से बन्द करवा दिए और फिर दिन भर की थकान के बाद जल्दी ही गहरी नींद में सो गया । में इस प्रकार कितनी देर सोया हूंगा, यह तो पता नहीं परन्तु अचानक ही मेरे ऊपर लुढ़कती हुई किसी भारी-सी वस्तु ने मेरी निद्रा को भंग कर दिया और दीपक को बुझा दिया । मैं चौंक पड़ा और मुझे सन्देह होने लगा कि किसी जंगली भालू अथवा अघोरी ने तो आक्रमण नहीं कर दिया, अथवा 'कालीमाता' ने ही मुझे अपने कर्कश पाश में प्राबद्ध तो नहीं कर लिया ? तभी उस खुले स्थान से, जिसको मैंने बन्द कर दिया था, एक हवा का झोंको आया और मेरी निद्रा भंग करने वाली वस्तु की किस्म मुझे ज्ञात हो गई । मैंने तुरन्त हो नवाब के पहरेदारों की सहायता से उस अवरोधक को पुनः यथास्थान रखवा दिया। वे पहरेदार नीचे चौक में अलाव के चारों ओर बैठे समय काटने के लिए गप्पें लड़ा रहे थे । उसी विश्रामस्थल से मैंने उनको उक्त कार्य के लिए बुलाया था । इसके बाद ही पिछले चौबीस घण्टों के नाटक का यवनिकापतन हुआ और मैं एक बार फिर कोमल 'पुनः पोषिका' निद्रादेवो की गोद में सो गया । और, मेरा यह प्रयत्न व्यर्थं नहीं गया ।
दूसरे दिन प्रातः मैंने उतराई शुरू की और जैसे ही महल की ज्योढ़ियों से बाहर निकला तो वे सभी दृश्य, जो कल शाम को धुंधले से दिखाई पड़ रहे थे, अब अपनी गम्भीरता सहित स्पष्ट हो गए थे । सूर्यदेव निरभ्र प्राकाश में उदित हुए थ और पर्वतों एवं जंगलों की विपुल तमोराशि पर सुनहरी किरणें बिखेरते हुए नेमिनाथ के मन्दिर तथा ग्रन्य पवित्र स्थानों के यात्रियों में प्रसन्नता का संचार कर रहे थे । अनेक टोलियों के यात्रियों में से मेरा ध्यान एक वृद्धा की ओर आकृष्ट हुआ जो एक पत्थर के सहारे लेटी हुई थी और उसका पुत्र चढ़ाई के कारण थके हुए उसके दुर्बल अंगों की चंपी करने के पवित्र कार्य में व्यस्त था । मैंने उससे वार्तालाप किया तो ज्ञात हुआ कि वह गोकुल से आई थी और उसके
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