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________________ प्रकरण - १८ विश्राम और वृश्यावलोकन [ ४०५ करता था इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भवतः खंगार की स्वतंत्रता उसकी शौर्याग्नि में बलिदान हो गई थी । एक पद्य में, जो प्रायः सभी चारणों को और मुख्यत: यादवों के चारणों को याद है, जूनागढ़-गिरनार की राज-वंशावली में चार मांडलिक, नौ नवधन, सात खंगार, पाँच सूरजमल और पाठ रूपपाल हुए हैं। दिन भर अत्यधिक परिश्रम करने के बाद मैं बहुत ही आभार मानता हुअा इन पुरावृत्तों को छोड़ कर महल के दरवाजे पर सुरक्षा-कक्ष में विश्राम के लिए लौटा–यदि इसे विश्राम कह लें क्योंकि मुझे इतने सारे पदार्थों की, जो देखने में आए थे, टिप्पणी लेनी थी और यह क्रम उस समय तक चलता रहा जब तक कि प्रकाश बिलकुल विलुप्त न हो गया। जब मैं अपनी कुस, चट्टान के सिरे पर आधारित किले की दीवार पर देवकूट से द्रुततया अदृश्य होते हुए दृश्य की अन्तिम झलक देखने के लिए ले गया तो दिन जल्दी जल्दो अस्त हो रहा था । घाटी के बीच में होकर जूनागढ़ की धुंधली छतरियां अस्पष्ट दिखाई दे रही थीं और हमारे तम्बू दूर से सफेद निशान (चखत्ते) ऐसे जान पड़ते थे। बीच की भूमि में स्पष्ट ऊँचे स्थान लक्षित होते थे; कहीं कहीं जंगल में धूमिल गुम्बज उठे हुए थे जिनसे मिल कर संध्या की छाया एक अस्पष्ट-से क्षीण रंग का दृश्य उपस्थित कर रही थी। __ जो बादल दिन भर से बिखरे-बिखरे डोल रहे थे अत्र एक घने समूह में एकत्रित हो कर क्षितिज में एक पतली-सी पट्टी को छोड़ कर सम्पूर्ण गहरे आकाश में अन्धेरा भर रहे थे । इस अन्धकार के पीछे सूर्य चुपचाप नीचे उतर गया था-मैं तो समझा, डूब चुका था; तभी अचानक बिजली की चमक के समान उसका रक्ताभ-मण्डल विशाल समुद्र के वक्षस्थल पर उसके विस्तार को मानों जादू से आलोकित करता हुआ दिखाई पड़ा । पट्टण से मांगरोल तक का समुद्र-तट यद्यपि स्पष्ट हो गया था परन्तु बीच-बीच में नगों के समान जड़े हुए नगर अस्पष्टता में ही लिपटे रहे । एक क्षण भर के लिए थोड़ा-सा प्रकाश कुछ सफेद-से पदार्थों पर कौंध गया जिनको कतिपय नगरों के नाम से बताया गया; परन्तु, यह दृश्य जितना सुन्दर था उतना ही क्षणिक भी था; उधर सूर्य की अन्तिम और तिरछी प्रकाशयुक्त किरणें सोनारिका (नदी) की भुजंगम-गति को समुद्र से गिरनार की तलहटी तक स्थान-स्थान पर आलोकित कर रही थी, कुछ ही क्षणों में इस 'प्रकाश-पुञ्ज' का स्थान दश गुने अंधकार ने ले लिया। मैं इस अचिरस्थायी दृश्य की खुमार का आनन्द लेता हुआ थोड़ी देर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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